Saturday 20 October 2018

TU JO NAHI HAI TO KUCH BHI NAHI HAI ( Part -1)





          

मन रिया को बालो से पकड़ कर मार रहा है , रिया अपने तेज नाखुनो से नोच रही है, तभी मन की मम्मी की नजर पड़ जाती है और वह आकर दोनों को अलग करती है, मन को डाटती  हुई लेकर एक साइड में चल देती हैं।  मन रिया को धमकाते हुवे -
मन - इस बार मम्मी गई नहीं तो बताता
रिया - तेरी मम्मी गई तभी तू बच गया
रिया जिसकी उम्र 5 साल है और और मन की 6 साल।  दोनों बच्चो में बिलकुल नहीं बैठती है।  मन अपने मामा के यहाँ आया है और रिया का घर मन के मामा के पड़ोस में ही है।  गर्मियों की छुट्टी में हर साल मन अपनी माँ के साथ अपने मामा के यहाँ जाता है। दोनों की लड़ाई रोज की बात थी कभी कभी तो दो तीन बार हो जाता था और दोनों में विश्वयुद्ध जैसी नौबत जाती।  मन की माँ और रिया की माँ दूर के रिश्ते में भाभी और नन्द लगती थी और बहुत प्यार था। 
दोनों को लड़ते देखकर मन की माँ और रिया की माँ  हसने लगते।  एक दिन जब दोनों ऐसे ही लड़ रहे थे तो मन की माँ ने रिया की माँ से कहा की दोनों लड़ते हुवे कितने अच्छे लगते है , सोचो अगर दोनों की शादी कर दी जाये तो।
दीदी ऐसा हो जाये तो सच में कितना अच्छा हो ( रिया की माँ हसते हुवे बोली )
ठीक है तो आज से तुम हम समधन हुवे (मन की माँ ने रिया की माँ से कहा )
मन और रिया दोनों अभी लड़ ही रहे थे , रिया जब कमजोर पड़ने लगी तो वही पड़ा एक छोटा सा पथ्थर उठा कर मन को मारने दौड़ी , मन भाग चला।  रिया की माँ आकर रिया को पकड़ी। 
अब तो रिया की माँ और मन की माँ अक्सर एक दूसरे को समधन कहकर बुलाते। कुछ दिन रहकर मन अपने घर वापस आ गया।  अगले दो तीन साल तक यही चलता रहा। मन मामा के यहाँ जाता और रिया से लड़ता झगड़ता। एक बार रिया मन के साथ गुड्डा और गुड़िया का खेल खेल रही थी। गुड्डा और गुड़िया के खेल में गुड्डा गुड़िया से शादी होनी रहती है।  गुड्डे की तरफ से मन और गुड़िया की तरफ से रिया खेल रही थी।  गुड्डे और गुड़िया की शादी होती है और फिर जब गुड्डी की बिदाई का समय होता है तो रिया रोने लगती है।  रिया को रोते देखकर मन भी रोने लगता है। रिया मन से पूछती है , बिदाई मेरी है तुम क्यों रो रहे हो।
मन - तुम रो रही हो इसलिए मै रो रहा हु। दोनों लिपटकर खूब रोये .
समय पंख लगाकर उड़ने लगा। धीरे धीरे दोनों दसवीं पास कर गए और 15 साल के हो गए।  इसी दौरान मन 5 साल अपने मामा के यहाँ जा भी नहीं पाया, तभी एक घटना घटी।  मन के पापा से गांव के एक खुखार और दुष्ट ब्यक्ति के साथ दुश्मनी हो गई।  उसने मन को जान से मारने की कोशिश की पर मन बच गया।  अब तो मन के पापा और मम्मी को उसका गांव में रहना सुरक्षित नहीं लगा तो मन को उसके मामा के यहाँ भेज दिए।  मन मामा के यहाँ पंहुचा तो सब बहुत दुलार कर रहे थे। मन चद्दर ओढ़कर सो रहा था, तभी सुबह कोई आकर उसका ओढ़ा हुवा चद्दर  "उठ भैस कितना सोयेगी "कहकर खींच दिया। चद्दर हटते ही उसकी आँख खुली तो सामने एक सुन्दर सी लड़की खड़ी थी। सामने खड़ी लड़की भी मन को देखकर ऐसे चौकी जैसे भूत देख ली हो। तभी पीछे से मन के मामा की लड़की सुमन आ गई। रिया को ऐसे देखकर पूछी क्या हुवा? ऐसे क्यों खड़ी है।  रिया सुमन के साथ आगे बढ़ गई। 
रिया - तू सोकर उठ चुकी है , और मै तुझे समझकर उस लड़के का चद्दर खींच दी।
सुमन - तू तो ऐसे कह रही है जैसे उसे जानती ही नहीं..
रिया - चेहरा तो जाना पहचाना है पर कौन है याद नहीं आ रहा।
सुमन - मन भैया हैं।
रिया - ओह् तो ये आपके मन भैया हैं।
सुमन - जी हाँ हमारे भैया और आपके सैया।
रिया - मार खायेगी बदमाश ज्यादा बोलेगी तो।
इतना कहकर रिया शरमाते हुवे अपने घर की ओर चली ।
जैसे ही घर के बाहर निकली तो मन से टकरा गई। फिर सॉरी बोलकर आगे बढ़ गई। मन भी मुस्कुराकर रह गया।   मन के मामा ने मन का नाम रिया के ही स्कूल में लिखवा दिया।  दोनों साथ साथ स्कूल जाने लगे।  दोनों साथ साथ पढ़ते खेलते और ज्यादातर समय साथ साथ रहते।
दोनों एक दूसरे में इस हद तक खो गए थे की एक पल की भी जुदाई बर्दास्त नहीं होती थी। मन के मामा और रिया के घर वालो को भी कोई  आपत्ति नहीं थी, क्युकी रिश्ते की बात पहले ही जो हो चुकी थी। 
एक दिन जब रिया और मन स्कूल से लौट रहे थे तो रिया का पैर फिसल गया और मोच आ गई।  मन उसे अपने गोदी में उठकर साइकल पर बिठाने लगा। आज रिया जब मन के करीब आई तो एक अलग ही एहसास हो रहा था। बड़ा अच्छा लग रहा था। मन को भी आज कुछ बदला सा लगा रिया को छूकर खुद को खोता सा लगा। एक पल को आँखे चार हुई, गुपचुप ही कुछ बात हुई, प्यार का सागर हिलोरे मरने लगा , पर संकोच और लज्जा के मन आगे टिक न सका।  मन रिया को बैठाकर घर लाया।  आग लग चुकी थी , अरमान दोनों के दिल में पलने लगे थे, दोनों एक दूसरे को अच्छे लगने लगे थे।  अगले दिन जब दोनों स्कूल जाने लगे तो चुप थे समझ नहीं आ रहा था की बात कहा से शुरू करे। कुछ कहने को सूझ नहीं रहा था। तभी रस्ते में एक सरसो खेत के पेड़ से एक फूल तोड़कर रिया मन के आगे कर दी।  मन एक पल को कुछ नहीं समझा पर फूल ले लिया। लौटते समय रास्ते में रिया रुक गई। मन भी रुक गया। रिया बैग से एक गुलाब का फूल निकाल कर मन के आगे कर दी।  मन को कुछ समझ नहीं आ रहा था क्या करे , फिर वह साइकल आगे बढ़ा दिया। 

मन रिया को पसंद करता था पर किसी रिश्ते में बधने से डर रहा था।  अब तो रिया मन को अपना सब कुछ मान चुकी थी , पाने को ठान चुकी थी, पर मन रिया से थोड़ी दूरी बनाने लगा था  

 

Tere Mere Pyar Nu Najar Na Lage


इलाहबाद शहर ! अपने धार्मिक, पौराणिक और संस्कृति के लिए जाना जाता है।  संगम ( पतितपावनी माँ गंगा, यमुना और सरस्वती का मिलन ) इसी शहर में होता है।  बधवा के बजरंगबली, नौलखा मंदिर ,अकबर का किला , भरद्वाज आश्रम और भी अनेको पवित्र और दर्शनीय स्थल इलाहबाद  के महत्व को दर्शाते हैं। इलाहबाद को प्रयागराज के नाम से भी जाना जाता है। इन सबके साथ साथ यह शहर अपने विद्वता और शिक्षा के लिए भी जाना जाता है।  प्रशिद्ध इलाहबाद यूनिवर्सिटी यहाँ के गौरव में चार चाँद लगाती है।  इस शहर ने देश को कई नेता, अभिनेता और और अधिकारी दिए हैं। देश की सबसे कठिन परीक्षा  I.A.S. में यहाँ के विद्यार्थियों का परचम हमेशा बुलंद रहा है।
यह कहानी आधुनिक प्यार के आधुनिक नजरिये को आइना दिखाती है   सच्चे प्यार की परिभाषा को ब्यक्त करती है। मेरी कामना है की हमारे  देश की समाज की  हर प्रेम कहानी ऐसी ही हो
   जुलाई का महीना है।  गर्मी और उमस अपने पूरे शबाब पर है।  पंखा कूलर सब घुटने टेक रहे हैं।  बड़े बूढ़े बच्चे सब परेशान हैं।  कोई बालकनी में बैठ रहा है , कोई दिन में तीन बार नहा रहा है।  रोशनी भी गर्मी से परेशान है, ऊपर से बिजली भी गुल हो गई।
 रोशनी एक प्रतियोगी छात्रा है जो इसी महिने प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने अपने गांव लखनपुर से आई है। रोशनी अपने गांव की और परिवार की पहली लड़की है जिसे शहर जाकर पढ़ने को मौका मिला है। इसका श्रेय उसके पामा को जाता है।  वह अपने पिताजी को पामा ही बुलाती है, क्युकी जब वह सिर्फ एक साल की थी तो उसकी माँ भगवान को प्यारी हो गई।  तबसे पापा और माँ दोनों का प्यार वह  अपने पिता रामलोचन मिश्रा से ही पाई थी इसीलिए वह प्यार से उनको पामा कहकर बुलाती है। रामलोचन मिश्रा जी एक इण्टर कॉलेज में प्रिंसिपल हैं ,और अपने क्षेत्र के प्रतिष्ठित ब्यक्तियो में से हैं। रोशनी को वह अपनी बेटी कम बेटा ज्यादा मानते हैं।  रोशनी जब शहर पढ़ने के लिए बोली तो मानो घर परिवार और गांव में हाहाकार मच गया।  रिश्तेदार कहने लगे की, जवान लड़की को अकेले शहर भेजना कत्तई ठीक नहीं है ,कुछ उच नीच हो गया तो। बुवा तो दो चार रिश्ते भी लेकर गई की शहर नहीं इसे ससुराल भेजो।  पापा सबकी सुन रहे थे।  पड़ोस के चचा जी तो शहर की लड़कियों के आठ दस कहानिया भी सुना दीये।  उदाहरण भी दे दिये की फलनवा की लड़की ढकनेवा की लड़की भाग गई और भी बहुत कुछ।  पर पापा सबकी  बोलती यह कहकर बंद कर दिये की, मेरी बेटी मेरा नाम रोशन करेगी।  वह कभी मेरा विश्वास नहीं तोड़ेगी।  रोशनी शहर गई और तैयारी शुरू कर दी। दोपहर के दो बज रहे थे पर बिजली नहीं आई।  पिछले दिन भी बिजली की वजह से चार घंटे पढाई का नुकसान हो गया था। रोशनी के सामने भी अब केवल एक  विकल्प था।  रोशनी अपनी किताबे उठाई और और पार्क में पहुंच गई।  जहा तहा इधर उधर उसे प्रेमी युगल बाहो में बांह डाले बैठे दिख रहे थे।   एक बार तो दिल में आया की वह लौट जाये तभी एक पेड़ के नीचे उसे एक अकेला लड़का पढता दिखा। रोशनी को वह जगह सुरक्षित और सही लगी।  रोशनी भी वही लड़के से थोड़ी दूर जाकर बैठ कर पढ़ने लगी।  लड़का अपनी पढाई में ब्यस्त था।  ठंडी हवा और पेड़ की छाव में रोशनी का  भी मन पढ़ने में लगा।  पांच बजे तक पढ़ने के बाद रोशनी वापस गई।  अब रोशनी रोज ही उस पार्क में पढ़ने जाने लगी और रोज उसी जगह पर जहा वह लड़का पढता था।  रोशनी उस लड़के को जानती नहीं थी पर उसपर अनजाना ही सही विश्वास हो गया था।   रोशनी की नजर भूल चूक से उस पर पड़ भी जाती थी पर  उसको कभी  भी खुद की तरफ देखता नहीं पाई।  एक साधारण सा लड़का , बगल में हवाई चप्पल पड़ा ,  एक पालीथीन जमीन पर विछाये अपनी पढाई में मशगूल रहता था।  यदा कदा नजर पड़ने पर रोशनी को इतना अंदाजा लग गया था की वह भी प्रशाशनिक परीक्षाओ की तयारी कर रहा है।  ऐसे ही दो चार दिन बीते।  जब वह पार्क में पढ़ रही थी तो उसकी पेन ख़त्म हो गई   रोशनी के समझ में नहीं रहा थी की वह क्या करे। रोशनी उस लड़के से पेन के लिए बोली।  लड़का चुपचाप पेन थमा दिया और रोशनी की तरफ देखा तक नहीं।  रोशनी जब चलने लगी और देखि तो लड़का जा चुका था।  अगले दिन फिर रोशनी की मुलाकात उसी जगह उस लड़के से हुई।  रोशनी धन्यवाद बोलकर उस लड़के को उसका पेन वापस कर दी। रोशनी उससे पूछी
रोशनी - प्रशाशनिक परीक्षाओ की तयारी करते हो ?
वह लड़का - जी हा।
लड़के की आवाज बड़ी मुश्किल से रोशनी तक पहुंची।
रोशनी - नाम क्या है तुम्हारा।
लड़का - वेद तिवारी।
दोनों में ऐसे ही थोड़ी बात शुरू हुई और फिर दोनों कुछ दिनों में एक दूसरे के बहुत अच्छे दोस्त बन गए।  वेद पढ़ने में बहुत अच्छा था , वह पूरी लगन के साथ पढाई करता था। रोशनी को भी उससे बहुत मदत मिल जाया करती थी। तीन महीने बीत गए दोनों एक दूसरे से बहुत अच्छे से जान पहचान हो गई। एक दिन वेद बोला की वह गांव जा रहा है। उसे फसल की कटाई में अपने माँ बाप की मदत करनी है।
 रोशनी - तुम्हारी पढाई का नुकसान होगा।
वेद - होगी , पर नहीं करुगा तो कौन करेगा, और खाऊंगा क्या ?
रोशनी - मजदूर लगा लो।
वेद - एक बीघे खेत है अगर उसमे भी मजदूर लगाऊगा तो हमें क्या बचेगा। वैसे भी बाबूजी की तबियत ठीक नहीं रहती तो उनको ज्यादा काम नहीं करने दे सकता।
रोशनी को वेद की बाते सुनकर बड़ा अच्छा लगा। वह उसको जितना अच्छा समझ रही थी वह उससे भी बढ़कर था।  ऐसा ब्यक्तित्व तो सिर्फ फिल्मो में ही दीखता था पर आज हकीकत में उसके सामने था . रोशनी आज तक उसे सिर्फ दो कपडे बदलते देखि थी। पैरो में वही हवाई चप्पल और पुराने ज़माने की साइकल।
वेद अपने गांव चला गया।  रोशनी दोपहर में वह पढ़ने पहुंची ठण्ड का मौसम आ गया था।  अब पेड़ से हटकर धुप में बैठकर पढ़ती थी।  वेद के बिना उसका पढ़ने में मन नहीं लग रहा था।  वेद के बिना सब सूना सूना लग रहा था।  दिल को उसकी तड़प महसूस हो रही थी। अजीब सी बेचैनी हो रही थी। उसकी बाते, उसकी मासूमियत , उसकी हसी , उसकी सादगी सब बहुत याद आ रहा था।  शायद रोशनी को वेद से प्यार हो गया था। ऐसा मै नहीं रोशनी का दिल रोशनी से कह रहा था।  आखिर दिल और दिमाग में दिल की जीत हुई।  रोशनी ने वेद को फ़ोन मिलाया।  वेद उस समय धान के गठ्ठर सर पर रख्खे खरिहान की तरफ बढ़ रहा था।  रोशनी का फ़ोन देखकर एक हाथ से गठ्ठर संभाला और एक हाथ से फ़ोन उठाया। 
रोशनी - वेद ब्यस्त तो नहीं हो, एक प्रश्न पूछना था।
वेद - हम ब्यस्त नहीं मस्त है।
रोशनी - मतलब ?
वेद - मतलब सर पर धान के बोझ का गठ्ठर है, तो थकान से मस्त है।
रोशनी - ठीक है मै बाद में बात करती हु।
रोशनी को वेद की यह अदा भी पसंद आई। वेद में न कोई दिखावा न कोई झूठ, न कोई झूठी शान , कुछ भी नहीं।
 रोशनी को वेद के बिना एक एक दिन काटना मुश्किल हो रहा था। उसका पढाई में भी मन नहीं लग रहा था। वेद के वापस आने का इन्तजार था। आखिर बड़ी मुश्किल से पंद्रह दिन बीते। अगले दिन रोशनी थोड़ा सज सवर कर उसी पेड़ के पास पहुंची। अभी वेद नहीं आया था। उसे लगा थोड़ी देर में आएगा। धीरे धीरे शाम  चार बज गए। रोशनी के सब्र ने जवाब दे दिया तो उसने वेद को फ़ोन लगाया। वेद का फ़ोन दो तीन बार में उठा।
रोशनी - आज पार्क में पढ़ने क्यों नहीं आये ?
वेद - मै अभी गांव में ही हु।
रोशनी - क्यों , क्या खेती करने का ही इरादा है क्या ?
वेद - वो बाबूजी की तबियत ठीक नहीं है।
रोशनी - कब आओगे ?
इस बार इस बात में इन्तजार और अपनापन साफ साफ उतर आया। पर वेद इनसब से अनजान समझ नहीं पाया।
वेद - जल्दी ही।
रोशनी कुछ न बोल सकी बस आँखों में आंसू और चहरे पर उदासी उसके दर्द को बया कर गई।
रोशनी रोज पार्क में इस आशा के साथ आती की आज वेद आएगा , और शाम को निराशा लिए चली जाती।
 किताबो को देखते देखते वेद की यादो में खो जाती। फ़ोन करती पर अब तो फ़ोन भी बंद जाने लगा था।
समय बीतता गया और रोशनी का प्यार वेद के लिए और भी गहरा होता गया। 
रोशनी रोज उस नंबर पर दो तीन बार इस आशा से फ़ोन लगाती की शायद लग जाये पर हर बार वही आवाज आती की नंबर बंद है।
रोशनी P.C.S के एग्जाम में बैठी पर फेल हो गई।  यह बात उसके पूरे गांव और रिश्तेदारों को पता लग गई।  मिश्रा जी भी लोगो के ताने सुनकर तंग आ गए थे और अब वो भी कन्यादान करके गंगा स्नान करना चाहते थे। एक दिन मिश्रा जी जब कॉलेज से लौट रहे थे तो उनके एक विद्यार्थी के पिता शुक्ल जी से मुलाकात  हो गई।  शुक्ल जी का लड़का  आशीष पढ़ने में बड़ा ही होनहार था और मिश्रा जी को प्रिय भी था। शुक्ल जी से पता चला की वह लड़का डॉक्टर बन गया है।  मिश्रा  के मन में अभिलाषा हुई की क्यों न रोशनी की और आशीष की शादी कर दी जाये।  मिश्रा जी अपने दिल की  बात शुक्ल जी के समक्ष रख्खे।  शुक्ल जी हाथ जोड़कर खड़े हो गए और बोले की आपके यहाँ रिश्ता होना तो सौभाग्य की बात है। रोशनी को मिश्रा जी गांव बुला लिए।  उसकी शादी की बात उसे बताई गई।  रोशनी बोली की जबतक वह अपने पैरो पर खड़ी नहीं हो जाती शादी नहीं करेगी।  मिश्रा जी बोले परिवार अच्छा है शादी के बाद अपने सपने पूरे कर लेना।  रोशनी अपने दिल  की बात वेद के बारे में  पामा को बताई।
मिश्रा जी - लड़का करता क्या है
रोशनी - वो भी तैयारी करता था लेकिन, अब तो गांव में खेती करता है।
मिश्रा जी - तो तुम्हारे फेल होने के पीछे ये वजह थी।  तुम भी दूसरी लड़कियों की तरह निकली।  तुम कुछ नहीं कर सकती सिवाय मेरी इज्जत मिटटी में मिलाने के। 
इतना कहते ही मिश्रा जी के आँखों में आंसू आ गए।
आज से पहले पामा को इतना दुखी रोशनी ने कभी नहीं देखा था। उसका दिल फटा जा रहा था वह हाथ जोड़कर मिश्रा जी के सामने बैठ गई।
रोशनी - आप मुझे बस एक मौका दीजिये अगर मै कुछ न बन पाई तो आप जहा कहेगे वहा शादी कर लूगी। बस एक मौका।
मिश्रा जी बेटी के सर पर हाथ फेरे और बोले - जाओ पर अपना वादा याद रखना।
रोशनी शहर पहुंची और पढाई में जुट गई। इधर मिश्रा जी शुक्ल जी से  शादी के लिए एक साल का समय मांग लिए।
ईश्वर ने साथ दिया रोशनी की मेहनत रंग लाई। रोशनी इस बार उप जिलाधिकारी के पद पर चयनित हो गई। पर आज भी उसके दिल में वेद ही था।  शायद ये वेद को पाने की चाह ही थी जो उसे यहाँ तक ले आई थी। रोशनी को तो ये भी नहीं पता था की वेद कहा है, किस गांव में और कही शादी तो नहीं कर लिया है।
एक आशा एक विश्वास और प्यार की डोर में बंधी रोशनी उसके इन्तजार में थी।
रोशनी  वेद का पता लगाने की बहुत कोशिश की पर पता नहीं लगा।  ट्रेनिंग के बाद उसकी पोस्टिंग प्रतापगढ़ जिले में हो गई। एक दिन एक जमीन हड़पने का मामला रोशनी के पास आया।  गांव के दबंग ठाकुर ने गरीब ब्राह्मण की जमीन पर जबरन कब्ज़ा कर लिया था। रोशनी सच्चाई जानने के लिए उस जगह पहुंची।  ठाकुर की बाते सुनने के बाद वह तिवारी जी के घर पर पहुंची।  एक बूढ़ा आदमी एक चारपाई बिछाकर रोशनी मैडम को बैठाया।  मैडम के लिए पानी लाने के लिए अपने लड़के को आवाज दिया और रो रो कर अपनी बात बताने लगा।  एक 28 साल का लड़का एक लोटे में पानी कटोरी में गुड़ और गिलास लेकर बाहर आया।  वह पानी गुड़ की कटोरी और गिलास पर ध्यान दे रहा था मैडम पर नजर नहीं पड़ी। मैडम की नजर उस पर पड़ गई।  रोशनी उस लड़के को देखते ही खड़ी हो गई।  बूढ़े तिवारी जी डर गए की उनसे कोई गलती हो गई क्या।  वेद की नजर भी  रोशनी पर पड़ी।  वेद भी रोशनी को पहचान गया।  रोशनी की आँखों में आँसू आ गये उसका दिल किया की जाकर वेद को गले लगा ले पर वेद तो रोशनी की दिल की बातो से अनजान था।  थोड़ी देर दोनों में  बात हुई और वेद बताया की ठाकुरो ने दो साल पहले उसके खेत पर कब्ज़ा कर लिया इसलिए अब वह मजदूरी करके परिवार का खर्च चलाता है।  रोशनी उसे अगले दिन बुलाई और फिर से तैयारी करने के लिए बोली।  वेद तैयार नहीं हो रहा था पर इस शर्त पर मान गया की उसका खेत रोशनी वापस दिला देगी। रोशनी वेद को अपने ही घर में रख ली और सारी सुविधाएं मुहैया करा दी।  वेद के घर की सारी परेशानिया दूर कर दी।  रोशनी के साथ कोई लड़का उसके घर में रहता है यह बात रोशनी के गांव में पहुंची तो तरह तरह की बात होने लगी।  मिश्रा जी रोशनी को गांव बुलाये और इस बारे में पूछे।  रोशनी सब सच सच बता दी।  वह अपने पामा से भला कुछ कैसे छुपाती। 
 मिश्रा जी - बेटी बाकि सब तो ठीक है पर लड़का करता क्या है।
रोशनी - पामा कुछ नहीं अभी तैयारी कर रहा है ।
मिश्रा जी - वो तो ठीक है पर जब रिश्तेदार और गांव के लोग पूछेंगे तो क्या बताउगा की क्या करता है।
रोशनी - पामा वह बहुत अच्छा लड़का है एक बार आप मिल तो लीजिये।
मिश्रा जी - बेटी मुझे मेरी इज्जत जान से प्यारी है, सोचा था कन्यादान करके स्वर्ग जाउगा पर शायद मेरी किस्मत में यह सुख नहीं है।
रोशनी - पामा मुझ पर विश्वास रखिये, मै आपका सम्मान और मान कभी कम नहीं होने दूगी। 
इतना कहकर रोशनी वहा से निकल दी। 
वेद मन लगाकर पढ़ रहा था पर इस बार के परीक्षा में वह साक्षात्कार में बाहर हो गया। अब वह निराश हो रहा था। रोशनी के दिल की बात भी उसे पता चल गई थी पर दोनों में अभी भी इजहार बाकि था।  रोशनी अपने पामा की इज्जत के लिए अभी खुद को संभाले थी।  पर कहते है की इश्क और मुश्क छुपाये नहीं छुपते।  वेद शाम को निराश गार्डन में टहल रहा था।  रोशनी आई और वेद से परेशान  होने का कारण पूछी।
वेद - रोशनी तुम ये सब, इतना क्यों कर रही हो।  मेरी किस्मत में शायद गांव का वही किसान बनना ही लिखा है।
वेद का इतना बोलना था की रोशनी उसके पास आकर उसके होठो पर उगली रखकर चुप करा दी।
रोशनी - तुम्हारी किस्मत में पहले I.A.S. बनना लिखा है, उसके बाद मेरा सजना बनना।
इतना कहकर रोशनी चुप हो गई वेद भी कुछ न बोल पाया। 
वेद पूरी मेहनत से जुट गया, रोशनी भी अपनी तरफ से  पूरा सहयोग कर रही थी और आखिर वह दिन आया जब वेद जिलाधिकारी वेद बन गया।  जिलाधिकारी बनने के बाद रोशनी वेद को अपने पामा से मिलाने ले गई।
 मिश्रा जी - रोशनी तुमने साबित कर दिया की प्यार सच्चा हो तो दुनिया की कोई ताकत कोई परेशानी उन्हें मिलने से नहीं रोक सकती। मुझे गर्व है तुम पर और खुद के संस्कार पर।
मिश्रा जी कन्यादान किये और गंगा नहाये। 

प्यार को कमजोरी नहीं अपनी ताकत बनाओ, कदम से कदम मिलाकर एक इतिहास बनाओ

Man ( Bawara)






Wednesday 4 April 2018

I Love You To

मुर्गे ने बाग़ दिया।  आँख तो खुल गई पर  फिर भी रजाई के अंदर चुपचाप लेटा रहा की हो सकता है आज बाबूजी जगे और हम इस कड़ाके की ठण्ड में उठकर पढ़ने से बच जाये।  हमारे अरमानो पर पानी तब फिर गया जब अगले  क्षण  बाबूजी की पहले प्यार से फिर जोर की आवाज सुनाई दी। दिल और मन को समझाया  की प्यारे अभी बात से समझ जाओ नहीं तो बाबूजी के जूते भी पड़ेगे ,कई बार पड़ा था झमाझम  बेमन से उठकर नीचे रख्खे ठन्डे पानी से मुँह धुला।  मुँह धुलना तो बस एक दिखावा था, थोड़ा पानी मुँह पर लगाया बाकि का धरती माँ को अर्पित कर दिया   मम्मी लालटेन जलाकर रख दी।  घर के बाहर कुहरा घिरा हुवा था, टप टप टपक रहा था। इतनी ठंडी में सुबह सुबह उठना फांसी चढ़ने के बराबर था।  फांसी तो फिर भी एक बार ही मिलती है यहाँ तो रोज सुबह ही उस फांसी की सजा से गुजरना पड़ता था।  शुरू हो गया रट्टा मारना  ......

 सात बजे तक पढ़े , घड़ी देखकर पता  चल रहा था की सात बजा है बाहर देखकर तो अभी भी ऐसा ही लग रहा था की सुबह नहीं हुई है।  कुहरा और बढ़ता जा रहा था। पशुघर से अभी पशु भी बाहर नहीं निकले थे ।अपनी किस्मत से तो उनकी किस्मत ज्यादा अच्छी लगती थी।  उन्हें सुबह उठना पड़ता था पढ़ना पड़ता था। कुहरा बढ़ता ही जा रहा था।  मन ही मन डिहवारिन माई बरम बाबा सबको मना रहा था की कुहरा और बढ़ जाये और नहाना पड़े।  पर बिना नहाये बिद्या ग्रहण करने से पाप होता है, ऐसा मेरा नहीं बाबूजी का मानना था और मजबूरी में ही सही नहाना पड़ता था।  हमारे घर से कुछ दूर दलित बस्ती के लड़के नहाना तो दूर धोते भी नहीं थे।  पता नहीं कितना पाप लेकर घूमते थे, तभी बदबू मारते थे , और शायद इसीलिए बाबूजी उन्हें छूने को मना करते थे। एक चीज की मुझे कभी दिक्कत नहीं होती थी,  जिसमे प्रायः ज्यादातर बच्चो को होती है स्कूल जाने में।  स्कूल मै रोज और सबसे पहले पहुँचता था।  ऐसा नहीं था की मेरा पढ़ने में ज्यादा मन लगता था। अगर ऐसा आप सबके मन में आया तो ये आपका बड़प्पन है मै तो कुसुम को देखने के लिए रोज जाता था। कुसुम मेरे ही स्कूल में मेरे साथ कक्षा आठ में पढ़ती थी मेरी ये दीवानगी कोई  नई नहीं थी पूरे एक साल पुरानी थी।  पड़ोस के भैया की शादी में गया था।  रात में बारातियो के मनोरंजन के लिए वीडियो ( आजकल की बड़ी वाली T.V. ) का प्रबंध था।  वही पर शाहरुख की "कुछ कुछ होता है " फीचर देखा।  वही से ये दीवानगी शुरू हुई ,स्कूल अच्छी लगने लगी क्युकी कुसुम अच्छी लगने लगी। रोज स्कूल आधे घंटे पहले पहुँचता था की उसकी बगल वाली बेंच पर बैठने को मिले जहा से मै उसे फुरसत से ताक सकू।  जब मास्टर साहब कुछ पूछते तो वो हमेशा जवाब दे देती थी  और मार खाने से बच जाती थी।  शायद  ही कोई  ऐसा दिन जाता था  जब दो चार छड़ी पड़े।  आदत पड़ गई थी , जिस दिन दो चार छड़ी पड़े तो ऐसा लगता था कुछ रह गया है।लेकिन जिस दिन उसे मार पड़ती थी कसम से कलेजा हिल जाता था। मास्टर साहब मास्टर कम मिस्टर इंडिया के मोगैम्बो ज्यादा लगते थे।  दिल तो करता था की हम भी मिस्टर इंडिया बन जाये पर साहब मास्टर साहब से नहीं उनकी मार से डर लगता था। जब रविवार आता था दिल उदास हो जाता था।  सारे बच्चे रविवार से खुश होते थे पर हम सोचते थे दुनिया बनाने वाले तुझे क्या भाया तूने रविवार क्यों बनाया। कहते है की जहा चाह वहा राह।  रविवार की सुबह कॉपी मांगने पहुंच जाते की हमारा विषय पूरा नहीं है अपनी काँपी दे दो  शाम को पहुंचाने और इसी प्रकार दिन में दो बार दीदार हो जाता।  कभी कभी उनके घर के चक्कर लगाते और उनकी एक झलक पाकर दिल को दुनिया की ख़ुशी मिल जाती।  धीरे धीरे समय बढ़ा और दीवानगी भी बढ़ी।  आठवीं पास करके नौवीं में पहुँचे।  पुराना स्कूल छूट गया ऐसा लगा की अब दिल टूट गया पर हमने हार नहीं मानी और उसी जहा वो पढ़ेंगे उसी कॉलेज में दाखिला लेने की ठानी।  उस समय पढ़ाई में दो ही माध्यमों का बोलबाला था।  कला माध्यम और विज्ञान माध्यम। बाबूजी पांडे जी के लड़के की देखि देखा हमको भी विज्ञान माध्यम से पढ़ाना चाहते थे।  इस बात पर मुझे ख़ुशी हुई इसलिए नहीं  की मेरे लिए अच्छा सोच रहे थे इसलिए की सोच में विकास हुवा है।  यही बाबूजी कहते थे न की बिना नहाये पढ़ने से विद्या नहीं आती और संस्कृत की जगह विज्ञान पढ़ाने की सोच रहे थे। पर कहते नहीं की इश्क में मति मर जाती है या ये कहिये जब मति मर जाती है तभी इश्क होता है।  उनके चक्कर में हम भी ले लिए कला माध्यम। इश्क में पितृ आज्ञा को ठुकराए, प्रेम गली सहुवाये , कुसुम की कक्षा में प्रवेश लेकर ही माने। फिर शुरू हो गया जोरो पर , अजी पढाई नहीं इश्कबाजी। लगे जी भर कर दीदार करने। इस बात पर कुसुम ने नहीं उसकी सहेली ने गौर किया।  उसके बगल में बैठती थी तो उसे लगा की हम उसे देख रहे हैं।  कुसुम  हमें देखकर मुस्कुराये हम दो साल से इस इन्तजार में थे, उसकी तो न आई उसकी सहेली की मुस्कान जरूर मिल गई। मै समझ गया की भैस पानी में चली गई। दोपहर का वक्त था, मेरा मतलब है खाना पीना का समय । मै कक्षा के एक कोने में रोटियां तोड़ रहा था  . कुसुम की बगल वाली शरमाते हुवे आ गई।  अनारकली की तरह शरमाई फिर कुछ बुदबुदाई पर मुझे बस इतना सुनाई दिया की ये मुझे घूरते क्यों हो माजरा है।  हम ठहरे ब्राह्मण के छोरे थोड़े सीधे थोड़े छिछोरे, पूरी सच्चाई उनको बताई  और साथ में ये भी कह दिया मदत करो बहना मै हु तुम्हारा भाई।  जैसे ही वह मेरी बात सुनी अनारकली से रोटी जली हो गई। यहाँ पढाई करने आते हो पढाई करो कहकर निकल गई। 

लड़कियों के पेट में कोई बात पचती तो है नहीं बस इसी बात का हमको फायदा हो गया।  मेरे कुछ कहे बिना ही कुसुम को मेरे कारनामो का पता हो गया।  अगले दिन स्कूल से लौटते हुवे पीछे से बुलाई।  मै समझ गया की या तो आज सैंडल पड़ेगी या घर पर बात पहुंचेगी। मै तो रुक गया पर मेरी धड़कने बढ़ गई। उसने मुझसे पुछा की वो जो सुन रही है क्या सच है। मै नहीं में सर हिला दिया।  वो भी पक्की छुपी हुई खिलाड़ी थी माता की कसम दे डाली , विद्यामाता की।  आखिर मैंने हा कह दिया।  सर नीचे करके खड़ा रहा की अब पड़ेगी तब पड़ेगी।  वह मेरे गाल को खींचते हुवे बोली, बुध्दू  “i love you to “. मुझे जोर का झटका जोरों से लगा।  ऐसा लगा की  उसे उठाकर बाहो में झुलाऊ फिर खुद को संभाला, ख़ुशी इतनी की कुछ न बोल पाया।  अब तो रोज ही बात होने लगी।  रोज ही प्यार रुपी प्रेमपत्रों का आदान प्रदान होने लगा। इसी समय स्कूल से चित्रकूट  टूर गया। चित्रकूट एक पवित्र और पर्यटन स्थल है।  भगवान राम वनवास के 11 वर्ष चित्रकूट में ही बिताये थे। पहले तो उसके घर वाले उसे जाने नहीं दे रहे थे पर उसकी सहेली के भरोसे उसके घर वाले उसे जाने दिए।  उसकी सहेली भी सोची थोड़ा ही सही पर मेरे साथ कुछ वक्त तो बिताने को मिलेगा। बस में लड़कियों को एक तरफ बैठाया गया लड़को को एक तरफ। इशारो इशारो में ही बात होने लगी। समय बिताने के लिए अंत्याक्षरी शुरू हुई।  अंत्यक्षरी में हम दोनों सबसे ज्यादा गीत एक दूसरे के लिए गाये।  रात को एक धर्मशाला में सभी बच्चो को रोका गया।  सोने के समय भी हम दोनों जुगाड़ लगाए और आस पास ही बिस्तर लगाए।  जहा पर पूरी रात हम दोनों एक दुसरे को देखते रहे। समय पंख लगाकर उड़ने लगा। देखते देखते तीन साल बीत गए और बारहवीं की परीक्षा आ गई। परीक्षा से ज्यादा डर एक दूसरे से बिछड़ने से लग रहा था  इन तीन सालो में अनगिनत सपने हमने सजा लिए थे, हजारो वादे कर लिए थे।  हमें पता था की परीक्षा के बाद बाबूजी हमको शहर भेज देंगे और कुसुम को गांव में ही रहना पड़ेगा। आज तक गांव की कोई भी लड़की शहर पढ़ने नहीं गई थी तो भला वो कैसे जाती। हम दोनों को ही अपने अलग होने का आभास होने लगा था। आखिर समय चक्र ने अपना खेल दिखाया और परीक्षा ख़त्म हो गई। गांव में लड़किया लड़को से बात करे तो मानो पूरे गांव पर पहाड़ टूट पड़ता है।  लड़की और लड़के के चरित्र का प्रमाण पत्र छप जाता है। नजरे बचाकर एक दूसरे को देख लेते और बमुश्किल प्रेम पत्र का आदान प्रदान हो पाता।

एक दिन हम उसको उसकी सहेली की सहयोग से गांव के बाहर बगीचे में बुलाये। हमने उसे बताया की कल हम पढ़ने के लिए शहर जा रहे हैं। अब तीन महीने में बमुश्किल एक बार ही आना होगा। यह सुनते ही उसके आँखों से अश्रुधार बह चली आज लोक लाज और सबका डर भूल मुझसे लिपट गई। उसने कहा की हम जिन्दा नहीं रह पाएंगे। हमने कहा हम जल्दी ही वापस आएंगे। उसे दिलासा देने के लिए यह झूठ बोलना पड़ा। उसके दिल के धड़कने की रप्तार और आँसूवो के सैलाब आज उसके प्यार को बया कर रहे थे, और मै सिर्फ झूठे दिलासे दे रहा था। अब जब वह लौटकर घर को जाने लगी तो फिर से मेरे गालो पर उसी प्रकार चिकोटी काटी जैसे इजहार के वक्त काटी थी।  भरे हुवे गले से वह वही बात दोहराई " i love you to " . मेरे धैर्य ने भी जवाब दे दिया और आँसूवो ने आँखों से बेवफाई कर दी।
 
अगले दिन मै शहर चला गया। छह महीने बाद गांव वापस  आया तो उसके घर के कई चक्कर लगाकर भी उसको न देख पाया। उसकी सहेली के हाथो उसको खत भिजवाया, पर इस बार उधर से कोई जवाब न आया। खत के इन्तजार करते रह गए अंत में बेरंग फिर शहर पहुंच गए। दिल में रह रह कर टीस उठती। उसकी बहुत याद आती। मिलने को दिल बेताब होता पर फिर हकीकत का एहसास होता।

छह महीने बाद फिर शहर से गांव आना हुवा। जैसे जैसे गांव नजदीक आ रहा था दिल की धड़कने बढ़ रही थी। उन रास्तो से गुजरते हुवे पुरानी सारी यादें ताजा हो गई। जहा हम साथ आते जाते थे , एक दूसरे को चिढ़ाते थे, और प्यार की बाते करते थे। दिल में ठानकर आया था की इस बार उससे मिलकर रहुगा और जरूरत पड़ी तो उसके बाबूजी से अपने रिश्ते की बात भी करुगा। घर पहुंचकर माँ के पैर पड़ा और बाबूजी के बारे में पूछा। माँ जो बताई की मेरे पैरो के नीचे से जमीन खिसक गई। सपनो में उड़ता हुवा अचानक धरातल पर आ गिरा। माँ ने कहा की आज कुसुम की शादी है, बाबूजी वही गए हैं। मै कुछ देर खड़ा रहा फिर चुपचाप बैठ गया। माँ को लगा की यात्रा से आया हु थका हू। अँधेरा हो गया था मेरे जीवन में भी और बाहर भी।  माँ भी कुसुम के घर जा रही थी मै भी उनके साथ चल दिया। बारात आ गई थी, जयमाल की रस्म होने जा रही थी। कुसुम की सहेलिया उसे जयमाल के लिए  लेकर बाहर आई। मै उसे देखता का देखता ही रह गया। स्वर्ग की अप्सरा लग रही थी। उसे दुल्हन के रूप में आजतक जीतनी भी कल्पना की थी उन सबसे भी खूबसूरत लग रही थी। दिल बैठा जा रहा था ऐसा लग रहा था सासे थम जाएगी। मुझे देखकर उसके भी बढ़ते कदम रुक गए। दोनों की नजरे मिली , दोनों ही आँखों में पानी था। दोनों ही आँखों में दर्द था। किसका ज्यादा था किसका काम था ये तो केवल ईश्वर ही जनता था। दोनों तरफ से जो भी था सच्चा था। जयमाल की रस्म के वक्त उसकी आँखों से आंसू छलक पड़े।  सबको लगा की घर से परिवार से विछड़ने का दर्द है केवल मुझे उसे और ऊपर वाले को पता था ये रूह से जिस्म के बिछड़ने का दर्द है। मै एक पर्ची पर " i will love you till my last breath " लिखकर उसकी सहेली के हाथो भिजवा दिया। थोड़ी देर बाद उधर से जवाब आया " i will love u to "  ये पढ़कर दिल को सुकून मिला जैसे बंजारे को घर मिला। 😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢

sonutiwarialld@gmail.com (Man Bawara)