मुर्गे ने बाग़
दिया। आँख
तो खुल गई पर
फिर भी रजाई
के अंदर चुपचाप
लेटा रहा की हो सकता
है आज बाबूजी
न जगे और हम इस
कड़ाके की ठण्ड में उठकर
पढ़ने से बच जाये।
हमारे अरमानो पर
पानी तब फिर गया जब
अगले क्षण बाबूजी
की पहले प्यार
से फिर जोर की आवाज
सुनाई दी। दिल और मन
को समझाया की प्यारे
अभी बात से समझ जाओ
नहीं तो बाबूजी
के जूते भी पड़ेगे ,कई बार पड़ा था झमाझम । बेमन से उठकर नीचे रख्खे
ठन्डे पानी से मुँह धुला। मुँह
धुलना तो बस एक दिखावा
था, थोड़ा पानी
मुँह पर लगाया
बाकि का धरती माँ को
अर्पित कर दिया ।
मम्मी लालटेन जलाकर
रख दी। घर के
बाहर कुहरा घिरा
हुवा था, टप टप टपक
रहा था। इतनी
ठंडी में सुबह
सुबह उठना फांसी
चढ़ने के बराबर
था। फांसी
तो फिर भी एक बार
ही मिलती है
यहाँ तो रोज सुबह ही
उस फांसी की
सजा से गुजरना
पड़ता था। शुरू हो
गया रट्टा मारना ......
सात बजे
तक पढ़े , घड़ी
देखकर पता चल रहा
था की सात बजा है
बाहर देखकर तो
अभी भी ऐसा ही लग
रहा था की सुबह नहीं
हुई है। कुहरा और
बढ़ता जा रहा था। पशुघर
से अभी पशु भी बाहर
नहीं निकले थे
।अपनी किस्मत से
तो उनकी किस्मत
ज्यादा अच्छी लगती
थी। न
उन्हें सुबह उठना
पड़ता था न पढ़ना पड़ता
था। कुहरा बढ़ता
ही जा रहा था।
मन ही मन
डिहवारिन माई बरम
बाबा सबको मना
रहा था की कुहरा और
बढ़ जाये और नहाना न
पड़े। पर
बिना नहाये बिद्या
ग्रहण करने से पाप होता
है, ऐसा मेरा
नहीं बाबूजी का
मानना था और मजबूरी में
ही सही नहाना
पड़ता था। हमारे घर
से कुछ दूर दलित बस्ती
के लड़के नहाना
तो दूर धोते
भी नहीं थे। पता
नहीं कितना पाप
लेकर घूमते थे,
तभी बदबू मारते
थे , और शायद इसीलिए बाबूजी
उन्हें छूने को मना करते
थे। एक चीज की मुझे
कभी दिक्कत नहीं
होती थी, जिसमे प्रायः
ज्यादातर बच्चो को
होती है स्कूल
जाने में। स्कूल मै
रोज और सबसे पहले पहुँचता
था। ऐसा
नहीं था की मेरा पढ़ने
में ज्यादा मन
लगता था। अगर ऐसा आप
सबके मन में आया तो
ये आपका बड़प्पन
है मै तो कुसुम को
देखने के लिए रोज जाता
था। कुसुम मेरे
ही स्कूल में
मेरे साथ कक्षा
आठ में पढ़ती
थी । मेरी ये दीवानगी
कोई नई
नहीं थी पूरे एक साल
पुरानी थी। पड़ोस के
भैया की शादी में गया
था। रात
में बारातियो के
मनोरंजन के लिए वीडियो ( आजकल की बड़ी वाली
T.V. ) का प्रबंध था। वही
पर शाहरुख की
"कुछ कुछ होता
है " फीचर देखा। वही
से ये दीवानगी
शुरू हुई ,स्कूल
अच्छी लगने लगी
क्युकी कुसुम अच्छी
लगने लगी। रोज
स्कूल आधे घंटे
पहले पहुँचता था
की उसकी बगल
वाली बेंच पर बैठने को
मिले जहा से मै उसे
फुरसत से ताक सकू।
जब मास्टर साहब
कुछ पूछते तो
वो हमेशा जवाब
दे देती थी और
मार खाने से बच जाती
थी। शायद ही कोई ऐसा दिन
जाता था जब दो
चार छड़ी न पड़े।
आदत पड़ गई
थी , जिस दिन दो चार
छड़ी न पड़े तो ऐसा
लगता था कुछ रह गया
है।लेकिन जिस दिन उसे मार पड़ती थी कसम से
कलेजा हिल जाता था। मास्टर साहब मास्टर कम मिस्टर इंडिया के मोगैम्बो ज्यादा लगते थे। दिल तो करता था की हम भी मिस्टर इंडिया बन जाये
पर साहब मास्टर साहब से नहीं उनकी मार से डर लगता था। जब रविवार आता था दिल उदास हो
जाता था। सारे बच्चे रविवार से खुश होते थे
पर हम सोचते थे दुनिया बनाने वाले तुझे क्या भाया तूने रविवार क्यों बनाया। कहते है
की जहा चाह वहा राह। रविवार की सुबह कॉपी मांगने
पहुंच जाते की हमारा विषय पूरा नहीं है अपनी काँपी दे दो शाम को पहुंचाने और इसी प्रकार दिन में दो बार दीदार
हो जाता। कभी कभी उनके घर के चक्कर लगाते और
उनकी एक झलक पाकर दिल को दुनिया की ख़ुशी मिल जाती। धीरे धीरे समय बढ़ा और दीवानगी भी बढ़ी। आठवीं पास करके नौवीं में पहुँचे। पुराना स्कूल छूट गया ऐसा लगा की अब दिल टूट गया
पर हमने हार नहीं मानी और उसी जहा वो पढ़ेंगे उसी कॉलेज में दाखिला लेने की ठानी। उस समय पढ़ाई में दो ही माध्यमों का बोलबाला था। कला माध्यम और विज्ञान माध्यम। बाबूजी पांडे जी
के लड़के की देखि देखा हमको भी विज्ञान माध्यम से पढ़ाना चाहते थे। इस बात पर मुझे ख़ुशी हुई इसलिए नहीं की मेरे लिए अच्छा सोच रहे थे इसलिए की सोच में
विकास हुवा है। यही बाबूजी कहते थे न की बिना
नहाये पढ़ने से विद्या नहीं आती और संस्कृत की जगह विज्ञान पढ़ाने की सोच रहे थे। पर
कहते नहीं की इश्क में मति मर जाती है या ये कहिये जब मति मर जाती है तभी इश्क होता
है। उनके चक्कर में हम भी ले लिए कला माध्यम। इश्क में पितृ आज्ञा को ठुकराए, प्रेम गली सहुवाये , कुसुम की
कक्षा में प्रवेश लेकर ही माने। फिर शुरू हो गया जोरो पर , अजी पढाई नहीं इश्कबाजी।
लगे जी भर कर दीदार करने। इस बात पर कुसुम ने नहीं उसकी सहेली ने गौर किया। उसके बगल में बैठती थी तो उसे लगा की हम उसे देख
रहे हैं। कुसुम हमें देखकर मुस्कुराये हम दो साल से इस इन्तजार
में थे, उसकी तो न आई उसकी सहेली की मुस्कान जरूर मिल गई। मै समझ गया की भैस पानी में
चली गई। दोपहर का वक्त था, मेरा मतलब है खाना पीना का समय । मै कक्षा के एक कोने में
रोटियां तोड़ रहा था . कुसुम की बगल वाली शरमाते
हुवे आ गई। अनारकली की तरह शरमाई फिर कुछ बुदबुदाई
पर मुझे बस इतना सुनाई दिया की ये मुझे घूरते क्यों हो माजरा है। हम ठहरे ब्राह्मण के छोरे थोड़े सीधे थोड़े छिछोरे,
पूरी सच्चाई उनको बताई और साथ में ये भी कह
दिया मदत करो बहना मै हु तुम्हारा भाई। जैसे
ही वह मेरी बात सुनी अनारकली से रोटी जली हो गई। यहाँ पढाई करने आते हो पढाई करो कहकर
निकल गई।
लड़कियों के पेट में कोई
बात पचती तो है नहीं बस इसी बात का हमको फायदा हो गया। मेरे कुछ कहे बिना ही कुसुम को मेरे कारनामो का
पता हो गया। अगले दिन स्कूल से लौटते हुवे
पीछे से बुलाई। मै समझ गया की या तो आज सैंडल
पड़ेगी या घर पर बात पहुंचेगी। मै तो रुक गया पर मेरी धड़कने बढ़ गई। उसने मुझसे पुछा
की वो जो सुन रही है क्या सच है। मै नहीं में सर हिला दिया। वो भी पक्की छुपी हुई खिलाड़ी थी माता की कसम दे
डाली , विद्यामाता की। आखिर मैंने हा कह दिया। सर नीचे करके खड़ा रहा की अब पड़ेगी तब पड़ेगी। वह मेरे गाल को खींचते हुवे बोली, बुध्दू “i love you to “. मुझे जोर का झटका जोरों से लगा। ऐसा लगा की उसे उठाकर बाहो में झुलाऊ फिर खुद को संभाला, ख़ुशी
इतनी की कुछ न बोल पाया। अब तो रोज ही बात
होने लगी। रोज ही प्यार रुपी प्रेमपत्रों का
आदान प्रदान होने लगा। इसी समय स्कूल से चित्रकूट
टूर गया। चित्रकूट एक पवित्र और पर्यटन स्थल है। भगवान राम वनवास के 11 वर्ष चित्रकूट में ही बिताये
थे। पहले तो उसके घर वाले उसे जाने नहीं दे
रहे थे पर उसकी सहेली के भरोसे उसके घर वाले उसे जाने दिए। उसकी सहेली भी सोची थोड़ा ही सही पर मेरे साथ कुछ
वक्त तो बिताने को मिलेगा। बस में लड़कियों को एक तरफ बैठाया गया लड़को को एक तरफ। इशारो
इशारो में ही बात होने लगी। समय बिताने के लिए अंत्याक्षरी शुरू हुई। अंत्यक्षरी में हम दोनों सबसे ज्यादा गीत एक दूसरे
के लिए गाये। रात को एक धर्मशाला में सभी बच्चो
को रोका गया। सोने के समय भी हम दोनों जुगाड़
लगाए और आस पास ही बिस्तर लगाए। जहा पर पूरी
रात हम दोनों एक दुसरे को देखते रहे। समय पंख लगाकर उड़ने लगा। देखते देखते तीन साल
बीत गए और बारहवीं की परीक्षा आ गई। परीक्षा से ज्यादा डर एक दूसरे से बिछड़ने से लग
रहा था । इन तीन सालो में अनगिनत सपने हमने सजा लिए थे, हजारो वादे कर लिए थे। हमें पता था की परीक्षा के बाद बाबूजी हमको शहर
भेज देंगे और कुसुम को गांव में ही रहना पड़ेगा। आज तक गांव की कोई भी लड़की शहर पढ़ने
नहीं गई थी तो भला वो कैसे जाती। हम दोनों को ही अपने अलग होने का आभास होने लगा था।
आखिर समय चक्र ने अपना खेल दिखाया और परीक्षा ख़त्म हो गई। गांव में लड़किया लड़को से बात करे तो मानो पूरे गांव
पर पहाड़ टूट पड़ता है। लड़की और लड़के के चरित्र
का प्रमाण पत्र छप जाता है। नजरे बचाकर एक दूसरे को देख लेते और बमुश्किल
प्रेम पत्र का आदान प्रदान हो पाता।
एक दिन हम उसको उसकी
सहेली की सहयोग से गांव के बाहर बगीचे में बुलाये। हमने उसे बताया की कल हम पढ़ने के लिए शहर जा रहे हैं। अब तीन महीने में बमुश्किल
एक बार ही आना होगा। यह सुनते ही उसके आँखों से अश्रुधार बह चली आज लोक लाज और सबका
डर भूल मुझसे लिपट गई। उसने कहा की हम जिन्दा नहीं रह पाएंगे। हमने कहा हम जल्दी ही
वापस आएंगे। उसे दिलासा देने के लिए यह झूठ बोलना पड़ा। उसके दिल के धड़कने की रप्तार
और आँसूवो के सैलाब आज उसके प्यार को बया कर रहे थे, और मै सिर्फ झूठे दिलासे दे रहा
था। अब जब वह लौटकर घर को जाने लगी तो फिर से मेरे गालो पर उसी प्रकार चिकोटी काटी जैसे
इजहार के वक्त काटी थी। भरे हुवे गले से वह
वही बात दोहराई " i love you to " . मेरे धैर्य ने भी जवाब दे दिया और आँसूवो
ने आँखों से बेवफाई कर दी।
अगले दिन मै शहर चला
गया। छह महीने बाद गांव वापस आया तो उसके घर
के कई चक्कर लगाकर भी उसको न देख पाया। उसकी सहेली के हाथो उसको खत भिजवाया, पर इस
बार उधर से कोई जवाब न आया। खत के इन्तजार करते रह गए अंत में बेरंग फिर शहर पहुंच
गए। दिल में रह रह कर टीस उठती। उसकी बहुत याद आती। मिलने को दिल बेताब होता पर फिर
हकीकत का एहसास होता।
छह महीने बाद फिर शहर
से गांव आना हुवा। जैसे जैसे गांव नजदीक आ रहा था दिल की धड़कने बढ़ रही थी। उन रास्तो
से गुजरते हुवे पुरानी सारी यादें ताजा हो गई। जहा हम साथ आते जाते थे , एक दूसरे को
चिढ़ाते थे, और प्यार की बाते करते थे। दिल में ठानकर आया था की इस बार उससे मिलकर रहुगा
और जरूरत पड़ी तो उसके बाबूजी से अपने रिश्ते की बात भी करुगा। घर पहुंचकर माँ के पैर
पड़ा और बाबूजी के बारे में पूछा। माँ जो बताई की मेरे पैरो के नीचे से जमीन खिसक गई।
सपनो में उड़ता हुवा अचानक धरातल पर आ गिरा। माँ ने कहा की आज कुसुम की शादी है, बाबूजी
वही गए हैं। मै कुछ देर खड़ा रहा फिर चुपचाप बैठ गया। माँ को लगा की यात्रा से आया हु
थका हू। अँधेरा हो गया था मेरे जीवन में भी और बाहर भी। माँ भी कुसुम के घर जा रही थी मै भी उनके साथ चल
दिया। बारात आ गई थी, जयमाल की रस्म होने जा रही थी। कुसुम की सहेलिया उसे जयमाल के लिए
लेकर बाहर आई। मै उसे देखता का देखता
ही रह गया। स्वर्ग की अप्सरा लग रही थी। उसे
दुल्हन के रूप में आजतक जीतनी भी कल्पना की थी उन सबसे भी खूबसूरत लग रही थी। दिल बैठा
जा रहा था ऐसा लग रहा था सासे थम जाएगी। मुझे देखकर उसके भी बढ़ते कदम रुक गए। दोनों
की नजरे मिली , दोनों ही आँखों में पानी था। दोनों ही आँखों में दर्द था। किसका ज्यादा था किसका काम था ये तो केवल ईश्वर ही जनता था। दोनों
तरफ से जो भी था सच्चा था। जयमाल की रस्म के वक्त उसकी आँखों से आंसू छलक पड़े। सबको लगा की घर से परिवार से विछड़ने का दर्द है
केवल मुझे उसे और ऊपर वाले को पता था ये रूह से जिस्म के बिछड़ने का दर्द है। मै एक
पर्ची पर " i will love you till my last breath " लिखकर उसकी सहेली के हाथो भिजवा
दिया। थोड़ी देर बाद उधर से जवाब आया " i will love u to " ये पढ़कर दिल को सुकून मिला जैसे बंजारे को घर
मिला। 😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢
sonutiwarialld@gmail.com (Man Bawara)
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