Tuesday 19 May 2020

Love – The coin (Part 1)

Love – The coin (Part 1)

 

मुंबई ! सपनो का शहर , आधुनिक, प्रगतिशील, भारत का उदर।  आत्मा नहीं कह सकता, क्युकी आत्मा तो अयोध्या, वृन्दावन हैं। हृदय तो प्रयागराज है।  जिसकी आत्मा निर्मल है हृदय पवित्र है वही सर्वोत्तम है , पूर्ण है। 

 

पंडित राजकिशोर जी , गांव के एक साधारण पूजा पाठ कराने वाले पंडित जी हैं , छल , कपट , लालच , कोई दो बोल प्रेम के बोल दे तो दुनिया भर के आशीर्वाद उनकी झोली में डाल देते हैं।  जितना है , जो प्रभु की भक्ति से मिलता है उसी में खुश हैं।  भगवान में अटूट विश्वास है कर्म और धर्म दोनों में प्रवीण है पर अहंकार से मुक्त हैं , इसलिए सांसारिक भाषा में साधारण तो आध्यात्म में महान हैं।

 

राजकिशोर जी आज भगवान कृष्ण से विनती कर रहे हैं -  हे प्रभु - कौन से धर्म संकट में डाल दिए हमें ?  अब हम मुंबई जैसे बड़े शहर में भला शादी ब्याह कराने  कैसे जाये?  हम तो अपने गांव की दहलीज भी जल्दी नहीं डाके हैं , फिर हम आपकी सेवा से एक भी दिन की छुट्टी नहीं लेना चाहते।  अब सेठ माखनलाल का विशेष आग्रह भी तो नहीं टाल सकते।  वो भी आपके परम भक्त है तो मेरे सखा भक्त हुवे और दूसरे हमारे कन्हैया की पढाई लिखाई सब उन्ही की कृपा से संभव हुई है।  प्रभु ! सेवक के लिए कोई मार्ग सुझाइये , धर्म संकट से मुक्ति दीजिये। 

 

इतना कहकर राजकिशोर जी  भगवान को प्रणाम किये ,मंदिर के कपाट बंद किये और चिंतित मन से घर की और प्रस्थान किये। घर पहुंचकर हाथ मुँह धुले और खाने बैठे।  पंडिताइन खाना परोसकर पंखा करने लगी।  पंडित जी के उदास मुख को देखकर वह पूछ बैठी की क्या बात है, आप कुछ परेशान दिख रहे हैं? राजकिशोर जी अपने मन की ब्यथा पंडिताइन से कह दिए।

पंडिताइन - आप  कन्हैया को भेज दीजिये,  उसके मुंबई घूमने का सपना भी पूरा हो जायेगा  और सेठ जी का सम्मान भी रह जायेगा।

पंडित जी - बात तो सही है

अगले दिन पंडित जी के सुपुत्र कन्हैया जी मुंबई के लिए ट्रेन से प्रस्थान किये।  नाम कन्हैया था और सूरत भी कन्हैया जैसी।  धोती कुरता पहने , बड़ी सी शिखा रख्खे , माथे पर त्रिपुण्ड लगाए। 

मुंबई पहुंचकर कन्हैया ने माखनलाल जी को अपने आने की सूचना दी।  सभी ड्राइवर कही कहीं बिजी थे , सेठ जी ने अपनी बेटी किशोरी को फ़ोन करके पंडित जो को साथ लाने को कहा।  किशोरी अपनी सहेलियों के साथ खरीददारी करने आई थी पंडित जी को साथ ले चलने की बात उसे पसंद तो नहीं आई पर अब करती भी क्या। पंडित जी नए थे, किशोरी उनको जिस जगह आने को कह रही थी वह समझ नहीं पा रहे थे , कभी इस तरफ तो कभी उस तरफ भाग रहे थे।  किशोरी को गुस्सा रहा था।  आखिर किशोरी ड्राइवर को पंडित जी को लाने के लिए भेजी।  पंडित जी को लेकर ड्राइवर आया।  किशोरी फोन पर बिजी थी , पंडित जी आकर ड्राइवर वाली सीट के बगल बैठे।  किशोरी गुस्से में थी फ़ोन से फुर्सत हुई हुई और गुस्से में बड़बड़ शुरू।

 

किशोरी - जब आप को शहर के बारे में पता नहीं तो आप मुंबई आये क्यों ? पापा भी कुछ भी करते हैं , यहाँ पंडितो की कमी है जो गांव से पंडित बुला लिए , और भी बहुत कुछ।

 

पंडित जी कन्हैया  कुछ नहीं कह रहे थे , सिर्फ़ मुस्कुरा रहे थे।  किशोरी की नजर सामने आईने  पर पड़ी और सुन्दर सा मुस्कुराता चेहरा देखकर मुँह बंद हो गया। पंडित जी के चेहरे की झलक मात्र से वह सब भूल गई और कई मिनट बस देखती रही।  शहर में उसने लड़के बहुत देखे थे , सुन्दर , गोरे पर इस चहरे में जो बात थी वो कही और दिखा था , मुस्कान तो मानो जैसे स्वयं कामदेव उतर आये हों।  किशोरी के मन में पंडित जी नाम सुनकर एक मोटा सा , तोंद फुलाये पंडित का दृश्य आता था पर हकीकत तो कुछ और था। अब उसे अपनी बातो पर पछतावा भी होने लगा पर अपनी सहेलियों के सामने पंडित जी से sorry भी नहीं बोल सकती थी।  आखिर यह उसके image का सवाल था।  उसकी सहेलिया भी कन्हैया की मुस्कान को निहारे जा रही थी, मानो किसी ने मोहिनी मंत्र मार दिया हो। अब कोई कुछ बोल रहा था , कन्हैया जी शहर की बड़ी इमारतों और बड़ी गाड़ियों को निहार रहे थे।  किशोरी को अब अपने सहेलियों से जलन भी हो रही थी ,  हो भी क्यों आखिर सब उसके shoping के चर्चे छोड़कर सिर्फ कन्हैया के दीदार में जो लग गई थी।

 

कन्हैया जी घर पहुंचे तो सेठ माखनलाल जी खुद अगवानी करने आये।  किशोरी को समझ में नहीं रहा था की पापा इस लड़के को इतना भाव क्यों दे रहे हैं , यहाँ तो 100 रुपये में पंडित मिलते हैं , पर इसमें ऐसा क्या है ?

 

कुछ देर में सारा परिवार बरामदे में आया।  माखनलाल की 3 पुत्रिया था।  जया , किशोरी , ललिता।  जया की शादी हो रही थी और किशोरी  ललिता अभी पढाई करती थी।  बरामदे में पंडित जी कन्हैया आराम से सोफे पर बैठे हैं , उनके चहरे पर एक अलग ही तेज है। 

किशोरी के लिए यह बहुत ही। intresiting था की आखिर अब क्या होने वाला है , पापा सबको बुलाये क्यों हैं?  जब सारा परिवार एकत्र हो गया तो सेठ माखनलाल और उनकी पत्नी आगे बढे एक नौकर एक बड़े से परात में पानी लेकर आया और सेठ और सेठानी पंडित जी के पैर धुलने लगे।   आज तक पापा बड़े से बड़े मिनिस्टर या अधिकारी का तो ऐसा स्वागत नहीं किये फिर इस लड़के का ? किशोरी को कुछ समझ नहीं रहा था। पैर धुलने के बाद  वही जल सबके ऊपर और पूरे घर में छिड़का गया।

 

ये सब क्या है और क्यों हो रहा है जानने की जिज्ञासा उसके अंदर उमड़ रही थी।  जब सेठाइन अंदर गई तो वह भी पीछे पीछे गई और पूछ बैठी।

 

किशोरी - माँ, ये सब क्या है , इस लड़के का इतना स्वागत और सम्मान ?

सेठाइन - सम्मान से नाम लो उनका , वो लड़के नहीं पंडित जी हैं , हमारे गुरु महराज।

किशोरी - वो तो ठीक है, पर  इतना सम्मान तो आप लोग मिनिस्टर के आने पर भी नहीं करते जितना इनका हो रहा है।

सेठाइन - क्युकी वो मिनिस्टर है और ये हमारे गुरु महराज

किशोरी - तो क्या गुरु महराज मिनिस्टर से ज्यादा बड़े हैं , ज्यादा पावरफुल हैं?

सेठाइन - किशोरी - गुरु को हमारे यहाँ भगवान से भी ऊपर माना गया है , अब जो भगवान से ऊपर है वो सबसे ऊपर है।

किशोरी - पहले ये तो जान लो की , जिसे आप इतना सम्मान दे रहे हो वह उस लायक है भी की नहीं

सेठाइन किशोरी से उलझना नहीं चाहती थी , वह जानती थी की इसे जितना समझाऊगी ये उतना ही प्रश्न करेगी। 


Saturday 7 December 2019

ऊरु (A love story)





एक कॉन्फ्रेंस हॉल जहाँ पर कुछ ही देर में ऊरु ऑर्गनिक  कम्पनी के मालिक mr.  कामोद अपने कंपनी के सभी 700  कर्मचारियों को सम्बोधित करने वाले हैं। उनकी कंपनी ने 4000  करोड़ के आकड़े को पार किया है जिसकी ख़ुशी में ये विशेष प्रोग्राम रख्खा गया है। तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा हॉल गूंज उठा।  स्टेज पर mr  कामोद आ चुके हैं। कामोद जी की उम्र यही कोई 30 से 31 के बीच है। चहरे पर एक प्यारी मुस्कान और आँखों में कुछ करगुजरने वाली आग उनकी शख़्सियत  को बया करती है। स्टेज के नीचे बैठे सभी लोग खड़े होकर ताली बजा रहे हैं। कामोद एक नजर चारो तरफ घुमाते हैं, तालियाँ अभी भी बज रही हैं।  एक हलकी मुस्कान के साथ हाथ जोड़कर सभी का अभिवादन करते हैं और सभी को बैठने का इशारा करते हैं।

mr  कामोद - यहाँ उपस्थित सभी लोगो का मेरा नमस्कार, प्रणाम।  आप सबको देखकर दिल हर्षित हो रहा है, आज जिस सफलता को मनाने के लिए हम यहाँ आये हैं उसके असली हक़दार आपसब हैं।

कामोद जी के इतना बोलते ही एक बार फिर पूरा हाल तालियों से गूँज गया। कामोद बोलते रहे और रह रहकर हॉल तालियों से गुंजायमान होता रहा यह सिलसिला काफी देर तक चलता रहा।
mr  कामोद - हमारी कंपनी के स्टोर देश के  सभी जिलों तक पहुंच चूका है, हम लोगो को स्वस्थ और हानिरहित चीजे उपलब्ध करा रहे हैं।  इससे हमें और हमारे लोगो को अच्छा फायदा हो रहा है पर देश के किसान तक जो हमें ये सारी चीजे मुहैया करा रहा है उस तक सही कीमत नहीं पहुंच पा रही है, इसके लिए जल्द ही हम बीच के बिचौलियों को हटाकर सीधे किसानो से खरीददारी करेंगे, इससे किसान और हमारा देश दोनों खुशहाल होंगे। मै जल्द ही गावो में जाकर किसानो से बात करुगा और उनको अपनी कंपनी से जोड़ूगा।

mr  कामोद की बात पूरी होते ही एक बार फिर हाल तालियों से गूँज गया।

अगले दिन

कामोद अपने  जनरल मैनेजर मिश्रा जी  को अपने केबिन में बुलाते हैं।
कामोद - मिश्रा जी मै कुछ गावों में किसानो से मिलने और उनको अपने प्लान के बारे में  समझाने जा रहा हूँ, आप यहाँ की सारी चीजे सम्हाल लीजियेगा।
मिश्रा जी - सर , अपने पास इतने जूनियर और सीनियर लोग हैं , उसमे से किसी को भेज दीजिये , आपका जाना उचित नहीं है, गांव के माहौल में आप रह नहीं पाएंगे।

कामोद - मिश्रा जी , मैनें अपनी जिंदगी के 24 साल गाँव  गुजरे हैं , अब ईश्वर की कृपा से ये सब हो गया है पर गांव आज भी मेरे दिल में बसता है , आप ये मान लीजिये की मै छुट्टिया मनाने गया हुवा हूँ। लोगो को शुद्ध चीजे देता हूँ मै भी गांव की शुद्ध हवा खा आऊं।

कामोद अगली सुबह महाराष्ट्र के गाँवों की तरफ निकल चले।  गांव के नजदीक पहुंचते ही उन्हें मिटटी की खुशबु और ताजी शुद्ध हवा मदमस्त करने लगी।  शाम होते होते वो अपने दोस्त के फार्म हाउस पर पहुंच गए।  फार्म हाउस पर पहुंचकर एक बार चारो तरफ नजर उठाकर देखे।  हरे भरे पेड़ , पछियो की आवाजे , दूर दूर तक फैले खेत देखकर पुरानी यादो में खो गए। गांव में गुजारे वो दिन और अपने प्यार के साथ बाग़ बगीचों में मिलना, भैस चराने के बहाने उसके घर के चक्कर लगाना , वो आम के पेड़ से आम तोड़ना , पेड़ के नीचे उसके गोद में सर रखकर सोना, सारी चीजे आँखों के सामने से गुजरी तो आँखों में आंसू आ गए।

एक बूढ़ा आदमी  जो फार्म हाउस की देखभाल करता था बाहर आया और कामोद के सामान को रूम में लेकर गया।  कामोद ने जब बूढ़े आदमी को दद्दू कहा तो बूढ़ा आदमी थोड़ा सकुचा गया।
बूढ़ा आदमी - साहब हम तो नौकर हैं आप हमें राम खेलावन कहकर बुलाइये।
कामोद - किसने कहा आप नौकर हैं, आप हमारे परिवार के बुजुर्ग हैं और हमारे यहाँ बुजुर्गो का नाम नहीं लिया जाता उन्हें सम्मान देकर बुलाया जाता है।
रामखेलावन इतना सम्मान पाकर मुस्कुरा उठा।
कामोद - दद्दू ! कौन कौन है आपके परिवार में ?
रामखेलावन कामोद का यह प्रश्न सुनकर कुछ देर चुप रहा फिर दुखी मन से बोला - कोई नहीं।
कामोद - क्यों ?
रामखेलावन - बेटे को जन्म देते ही घरवाली चल बसी, एक बेटा था जो 22 साल की उम्र में साप काटने से गुजर गया।
इतना कहते कहते रामखेलावन के आँखों से आंसू निकल पड़े। कामोद उनके पास जाकर अपने रुमाल से उनका आसू पोछा।
कामोद - सॉरी दद्दू मैंने आपको रुला दिया।
रामखेलावन - कोई बात नहीं साहब, आप बैठिये मै आपके लिए चाय बनाकर लाता हूँ।
कामोद पानी का ग्लास रामखेलावन को देते हुवे, आप पानी पीजिये आज मै आपको चाय पिलाता हूँ।
रामखेलावन - अरे नहीं साहब , आप इतने बड़े आदमी होकर चाय बनाएंगे, ये आपको सोभा नहीं देता ये मेरा काम है मुझे करने दीजिये।
कामोद - दद्दू , शहर की भागदौड़ की जिंदगी में कहीं गुम हो गया हूँ , एक बार फिर पुरानी जिंदगी जीना चाहता हूँ ,  आज चाय मैं बनाऊगा।

कामोद चाय बनाया और रामखेलावन के साथ बहार गार्डन में बैठ कर दोनों चाय पिए।  अब सूरज डूब रहा था, गौधूलि हो रही थी।

कामोद - दद्दू ! खाना कौन बनाता है ?
रामखेलावन - साहब रामबली बनाता था , उसकी जोरू अस्पताल में है तो वह पूरे हप्ते छुट्टी पर है।
कामोद - फिर तो मुसीबत हो गई, हमको खाना बनाना नहीं आता।  अब  खायेगे क्या ?
रामखेलावन - साहब हम कुछ बना देंगे।
कामोद - यहाँ आस पास कोई होटल नहीं है क्या ?
रामखेलावन - नहीं साहेब , यहाँ गांव में कोई होटल कहा है।
कामोद - आस पास  के किसी बाजार में ?
रामखेलावन - साहेब होटल तो नहीं है , पर यहाँ से 5 किलोमीटर दूर एक छोटा सा घरघूती वाला है।
कामोद - तो जाइये वहीँ से ले आइये।
रामखेलावन - ठीक है साहेब।

कामोद पैसे निकाल कर रामखेलावन को दिए और रामखेलवन पैदल ही चल पड़ा।
कामोद - दद्दू  पैदल क्यों जा रहे हैं?
रामखेलवन -  साहेब बस एक घंटे में लेकर आता हूँ।
कामोद - दद्दू ! जब अपने पास गाड़ी है तो आप पैदल क्यों जाओगे , आप गाड़ी में जाइये और आराम से लेकर आइये।

रामखेलावन आजतक इतनी महगी गाड़ी देखा तक नहीं था  बैठने की तो दूर रही।

कुछ देर में रामखेलावन ऑडी गाड़ी से उस घरघूती (घर में ही खाना बनाकर बेचने वाली जगह ) होटल में पहुंच गया।  एक छोटा सा कमरा वही एक कोने में छोटी सी रसोई हैं। रसोई के बाहर ३-4 कुर्सियां और स्टूल ग्राहकों के बैठने के लिए लगे हैं।

अब अँधेरा हो गया था, घरघूती होटल के रसोई में एक बल्ब जल रहा था। उसकी रोशनी बमुश्किल बाहर तक पहुंच रही थी।
रसोई में एक सुन्दर सी औरत रोटियां सेक रही है जिसका नाम उर्वशी है । उसे देखकर लग रहा था की जैसे अभी कुछ दिन पहले ही शादी हुई थी।
बाहर उसका पति सब्जिया काट रहा था, दारू के नशे में चूर कभी कुछ बकता तो कभी उर्वशी को गलियाता।

गाड़ी की लाइट जैसे ही उस कमरे पर पड़ी तो वह सोची की कौन आ गया ? यही सोचकर बहार आ गई।  बाहर बैठा उसका पति भी उठकर खड़ा हो गया।
ऑडी गाड़ी देखकर दोनों पति पत्नी कुछ समझ नहीं पाए की उनके दरवाजे पर इतनी महगी गाड़ी से कौन आया है ? गाड़ी से रामखेलावन उतरे।
राम खेलावन को उर्वशी पहचानती थी।  राखेलवन को देखकर उर्वशी चौंक गई , सुबह तक जो साइकल  से चल रहे थे शाम को को करोडो की गाड़ी से।

उर्वशी - काका कोई लॉटरी लग गई क्या ?
रामखेलवन - अरे नहीं बिटिया, शहर से साहब आये हैं, तो बोले दद्दू आप पैदल नहीं गाड़ी से जाओ तो हम चले आये।
उर्वशी - साहब आपके दिलेर लगते हैं।
रामखेलवन - सही बोली बिटिया दिलेर तो दिलेर उतने ही सज्जन आदमी हैं , अपने हाथो से चाय बनाये और हमका पिलाये।

आज बहुत समय बाद उर्वशी रामखेलावन को इतना खुश देख रही थी।  उसे रामखेलावन के बारे में सब पता था , राम खेलावन को खुश देखकर उसे भी ख़ुशी हुई।  अभी उर्वशी रामखेलावन से बात कर ही रही थी की उसका पति फिर से गलियाना चालू कर दिया।

उर्वशी का पती - चल ससुरी अंदर खाना बना, जब देखो तब लोगो से बात करने लग जाती है.

रामखेलावन को उर्वशी पर तरस आता था की इतनी सुन्दर और पढ़ी लिखी लड़की शराबी के को कैसे मिल गई , ईश्वर भी क्या क्या करता है।

रामखेलावन खाना लेकर फार्महाउस पहुंचे । कामोद को जोरो से भूख  लगी थी।  रामखेलावन खाना लगाया, कामोद जैसे ही पहला निवाला मुँह में डाला, तो थोड़ा सोच में पड़ गया, खाने का स्वाद उसे जाना पहचाना लग रहा था। इससे पहले भी वह ऐसा खाना खा चूका था पर जिसके हाथो से खाया था वह अब उसी जिंदगी में नहीं थी। आज वर्षो बाद उसे फिर वही स्वाद नसीब हुआ था। बड़े और महँगे होटलो में तो वह खाता ही रहता था पर जो स्वाद इस खाने में था वह कहीं नहीं था।  खाना खाकर आत्मा तृप्त हो गई। अब तो रोज कामोद वही खाना खाता था। खाते हुवे बनाने वाले की तारीफ भी करता।

रामखेलावन कामोद को बताये की जहा से खाना लाता हूँ बहुत प्यारी बच्ची है पर उसका पति शराबी है , अक्सर उससे मारपीट करता है , शराब और जुवें की लत में सारी जमीन जायदाद बेच लिया और अब इसी खाने से उनका गुजरा चलता है। यह सब सुनकर कामोद को बहुत दुःख हुवा।

रामखेलावन जब खाना लेने जाते तो उर्वशी भी साहेब के बारे में खूब बाते करती। ढेर सारी बात पूछती और रामखेलवन कामोद के सरल स्वाभाव और सज्जनता की बखान करते नहीं थकते थे।

उर्वशी -  साहब शादीशुदा है या कुँवारे  ?
 रामखेलवन बोले - साहब अभी कुँवारे हैं , जिससे प्रेम करते थे वो उन्हें छोड़कर चली गई तो कहते हैं अब शादी ही नहीं करेंगे।
 उर्वशी - आपके साहब जब इतने पैसे वाले हैं और इतने अच्छे इंसान हैं तो कोई मूरख ही छोड़कर गई होगी।
रामखेलावन - तब साहब गरीब हुवा करते थे, इसलिए छोड़कर चली गई।
उर्वशी - तो साहब आपके देवदास बने हैं।

इतना कहकर दोनों है पड़े।

उर्वशी - एक काम करोगे काका ?
उर्वशी - इस छोटे से बाजार में ये खाने का धंधा तो चल नहीं रहा, कोई दो रोटी ले जाता है तो कोई थोड़ी सब्जी और शराबी पति की कोई बात आपसे छिपी नहीं है
साहब से कहकर मुझे फार्म हाउस पर खाना बनाने के लिए लगवा दो, फिर जब - जब  साहब आएंगे तो उन्हें मेरे हाथ का खाना रोज मिलेगा।
रामखेलावन - बात तो सही कही बिटिया, हम आज साहब से चर्चा चलाएंगे।

रामखेलावन खाना लेकर आये और कामोद बखान बखान कर खाना शुरू कर दिया।  सही मौका देखकर रामखेलावन उर्वशी की बात कामोद से कह दिए।

रामखेलवन - साहब खाना बनाने वाली कह रही थी की आप उसे यहाँ खाना बनाने पर लगा लीजिये, बेचारी थोड़ा परेशान है।
कामोद - ठीक है काका कल सुबह बुला लाइए। यहाँ मै 1000 एकड़ जमीन खरीदने की सोच रहा हुँ, बात भी लगभग बन रही है तो मेरा आना लगा ही रहेगा।

अगली सुबह रामखेलवन उर्वशी को बुलाने गए।  ऑडी कार में बैठना उर्वशी का सपना था , गाड़ी में बैठकर उसे बहुत ख़ुशी हो रही थी तो दुःख भी हो रहा था , उसने खुद की ऑडी कार में बैठने का सपना देखा था। गाड़ी में AC चल रही थी, हल्का म्यूजिक भी चल रहा था, आज तो उर्वशी को मजा आ गया। कुछ ही मिनटों में गाड़ी फार्म हाउस पहुंच गई।  फार्म हाउस देखकर उर्वशी को याद आया की उसके सपनो का घर भी ऐसा ही था।  राम खेलावन  उर्वशी को गेट पर ही रोककर अंदर गए और कामोद को बताया की खाना बनाने वाली आ गई है आप मिल लीजिये। कामोद  लैपटॉप में कुछ काम कर रहा था तो इशारा से कहा की अंदर बुला लाइए।
रामखेलावन उर्वशी को अंदर लेकर आये , उर्वशी नजरे नीचे की थी उसे बहुत संकोच हो रहा था, उसने सोचा नहीं थी की कभी ऐसा भी दिन आएगा की दुसरो के घर खाना बनाना पड़ेगा। किस्मत और वक्त की बात है जो जो न करवाए। नजरे नीचे किये वह अंदर आई, डर के मरे वह कामोद की तरफ देख भी नहीं रही थी चुपचाप सर झुकाये बैठी थी। कामोद लैपटॉप की स्क्रीन से नजरे गड़ाए बिना उसकी तरफ देखे ही बैठने के लिए बोला। एक मिनट बाद कामोद लैपटॉप की स्क्रीन को बंद किया और यह कहते हुवे उसकी तरफ देखा की आप खाना बहुत  >>>>><<<<<<< अभी बात पूरी नहीं हुई थी की उर्वशी और कामोद दोनों एक दूसरे को देखे।  एक दूसरे को देखकर दोनों चकित रह रह गए  सहसा उठ खड़े हुवे। बड़ी देर तक दोनों एक दूसरे की तरफ बिना कुछ बोले स्तब्ध हुवे देखते रहे।

कामोद - उरु तुम ?

कामोद को 6 साल पहले की बात याद आ गई।

यह वही लड़की थी जिसे आजसे साल पहले कामोद पागलो की तरह प्यार करता था।  उर्वशी को कामोद प्यार से उरु बुलाता था।  तब कामोद सिर्फ एक ही काम करता था उरु से प्यार।  दोपहर के वक्त  बगीचे में दोनों मिलते तो कामोद ऊरु की गोद में सर रखकर लेट जाता और  ऊरु कामोद के बालो में उंगलिया फेरती।   रोज कामोद  के लिए घर से खाना बनाकर और कामोद खाये जाता गुण गाये जाता। ऊरु भी कामोद से प्यार करती थी पर कामोद से भी ज्यादा प्यार दौलत से करती थी।  कामोद एक गरीब घर का लड़का था पर जितना था उतने में ही खुश था, उसकी ख्वाहिस बस उरु से शादी थी। ये बात उर्वशी को पसंद नहीं थी।  वह किसी दौलत वाले से शादी करना चाहती थी और इसके लिए उसने कई बार कामोद को मुंबई कमाने के लिए भेजा पर कामोद का मन बिना उरु के नहीं लगता और 2 -4 दिन में ही वह वापस आ जाता। अपनी भैसे लेकर चलता और भैस चराने के बहाने उर्वशी के दीदार करता। रात दिन सुबह शाम कामोद को बस ऊरु दिखती। इसी दौरान उर्वशी के  पापा ने उर्वशी की शादी एक दूर के रिश्तेदार के यहाँ कर दी। लड़के के घर गाड़ी मोटर अच्छा घर सब था। जब यह बात उर्वशी को पता चली तो वह शादी के लिए राजी हो गई।  ऊर्वशी कामोद के साथ अपना भविष्य उज्जवल नहीं देख रही थी इसलिए उसने यह रास्ता चुना था। जब यह बात कामोद को पता चली तो वह ऊरु से गांव के बगीचे में मिला।
कामोद - उरु,  मुझमे क्या कमी है की तुम उस लड़के से शादी कर रही हो ?
उर्वशी -  तुम जिंदगी में कुछ कर नहीं सकते और मै सारी जिंदगी गरीबी में नहीं बिता सकती।
कामोद - उर्वशी मै तुम्हारे सारे सपने पूरा करूँगा। अपना वक्त आएगा जब हमारे पास हर ख़ुशी और ढेर सारी दौलत होगी।
उर्वशी - तुम्हारे पास करने को बड़ी बड़ी बाते हैं और तुमसे कुछ न हो पायेगा।
कामोद - तुम मुझे  बस 1 से 2 साल का वक्त दो , मै तुम्हारे लिए सब करुगा, मेरे लिए तुम्हारे प्यार से बढ़कर दुनिया की कोई दौलत नहीं है।
उर्वशी - कामोद अब मै और ज्यादा तुम्हारा इन्तजार नहीं कर सकती

इतना कहकर उर्वशी चल दी और कामोद उसके पैरो को पकड़ कर लिपट गया। उर्वशी भी दिल पर पर पथ्थर रख ली थी और फिर अपने सपनो से समझौता नहीं कर सकती थी।

ये सब बाते याद करके कामोद की आँखों से आंसू गिरने लगे , उर्वशी भी कामोद को इतने दिन बाद पाकर और उसके साथ वर्षो पहले की हुई सलूक को यादकर रोने लगी।  कामोद उर्वशी के करीब पंहुचा ,दिल में आया की उसे सीने से लगाकर दुलारे , चुप कराये , आंसू पोछे पर उर्वशी के मांग के सिन्दूर पर नजर पड़ते ही कामोद ठिठक गया और उसे याद आया की अब वह किसी और की अमानत है उसकी ऊरु नहीं।




Saturday 20 October 2018

TU JO NAHI HAI TO KUCH BHI NAHI HAI ( Part -1)





          

मन रिया को बालो से पकड़ कर मार रहा है , रिया अपने तेज नाखुनो से नोच रही है, तभी मन की मम्मी की नजर पड़ जाती है और वह आकर दोनों को अलग करती है, मन को डाटती  हुई लेकर एक साइड में चल देती हैं।  मन रिया को धमकाते हुवे -
मन - इस बार मम्मी गई नहीं तो बताता
रिया - तेरी मम्मी गई तभी तू बच गया
रिया जिसकी उम्र 5 साल है और और मन की 6 साल।  दोनों बच्चो में बिलकुल नहीं बैठती है।  मन अपने मामा के यहाँ आया है और रिया का घर मन के मामा के पड़ोस में ही है।  गर्मियों की छुट्टी में हर साल मन अपनी माँ के साथ अपने मामा के यहाँ जाता है। दोनों की लड़ाई रोज की बात थी कभी कभी तो दो तीन बार हो जाता था और दोनों में विश्वयुद्ध जैसी नौबत जाती।  मन की माँ और रिया की माँ दूर के रिश्ते में भाभी और नन्द लगती थी और बहुत प्यार था। 
दोनों को लड़ते देखकर मन की माँ और रिया की माँ  हसने लगते।  एक दिन जब दोनों ऐसे ही लड़ रहे थे तो मन की माँ ने रिया की माँ से कहा की दोनों लड़ते हुवे कितने अच्छे लगते है , सोचो अगर दोनों की शादी कर दी जाये तो।
दीदी ऐसा हो जाये तो सच में कितना अच्छा हो ( रिया की माँ हसते हुवे बोली )
ठीक है तो आज से तुम हम समधन हुवे (मन की माँ ने रिया की माँ से कहा )
मन और रिया दोनों अभी लड़ ही रहे थे , रिया जब कमजोर पड़ने लगी तो वही पड़ा एक छोटा सा पथ्थर उठा कर मन को मारने दौड़ी , मन भाग चला।  रिया की माँ आकर रिया को पकड़ी। 
अब तो रिया की माँ और मन की माँ अक्सर एक दूसरे को समधन कहकर बुलाते। कुछ दिन रहकर मन अपने घर वापस आ गया।  अगले दो तीन साल तक यही चलता रहा। मन मामा के यहाँ जाता और रिया से लड़ता झगड़ता। एक बार रिया मन के साथ गुड्डा और गुड़िया का खेल खेल रही थी। गुड्डा और गुड़िया के खेल में गुड्डा गुड़िया से शादी होनी रहती है।  गुड्डे की तरफ से मन और गुड़िया की तरफ से रिया खेल रही थी।  गुड्डे और गुड़िया की शादी होती है और फिर जब गुड्डी की बिदाई का समय होता है तो रिया रोने लगती है।  रिया को रोते देखकर मन भी रोने लगता है। रिया मन से पूछती है , बिदाई मेरी है तुम क्यों रो रहे हो।
मन - तुम रो रही हो इसलिए मै रो रहा हु। दोनों लिपटकर खूब रोये .
समय पंख लगाकर उड़ने लगा। धीरे धीरे दोनों दसवीं पास कर गए और 15 साल के हो गए।  इसी दौरान मन 5 साल अपने मामा के यहाँ जा भी नहीं पाया, तभी एक घटना घटी।  मन के पापा से गांव के एक खुखार और दुष्ट ब्यक्ति के साथ दुश्मनी हो गई।  उसने मन को जान से मारने की कोशिश की पर मन बच गया।  अब तो मन के पापा और मम्मी को उसका गांव में रहना सुरक्षित नहीं लगा तो मन को उसके मामा के यहाँ भेज दिए।  मन मामा के यहाँ पंहुचा तो सब बहुत दुलार कर रहे थे। मन चद्दर ओढ़कर सो रहा था, तभी सुबह कोई आकर उसका ओढ़ा हुवा चद्दर  "उठ भैस कितना सोयेगी "कहकर खींच दिया। चद्दर हटते ही उसकी आँख खुली तो सामने एक सुन्दर सी लड़की खड़ी थी। सामने खड़ी लड़की भी मन को देखकर ऐसे चौकी जैसे भूत देख ली हो। तभी पीछे से मन के मामा की लड़की सुमन आ गई। रिया को ऐसे देखकर पूछी क्या हुवा? ऐसे क्यों खड़ी है।  रिया सुमन के साथ आगे बढ़ गई। 
रिया - तू सोकर उठ चुकी है , और मै तुझे समझकर उस लड़के का चद्दर खींच दी।
सुमन - तू तो ऐसे कह रही है जैसे उसे जानती ही नहीं..
रिया - चेहरा तो जाना पहचाना है पर कौन है याद नहीं आ रहा।
सुमन - मन भैया हैं।
रिया - ओह् तो ये आपके मन भैया हैं।
सुमन - जी हाँ हमारे भैया और आपके सैया।
रिया - मार खायेगी बदमाश ज्यादा बोलेगी तो।
इतना कहकर रिया शरमाते हुवे अपने घर की ओर चली ।
जैसे ही घर के बाहर निकली तो मन से टकरा गई। फिर सॉरी बोलकर आगे बढ़ गई। मन भी मुस्कुराकर रह गया।   मन के मामा ने मन का नाम रिया के ही स्कूल में लिखवा दिया।  दोनों साथ साथ स्कूल जाने लगे।  दोनों साथ साथ पढ़ते खेलते और ज्यादातर समय साथ साथ रहते।
दोनों एक दूसरे में इस हद तक खो गए थे की एक पल की भी जुदाई बर्दास्त नहीं होती थी। मन के मामा और रिया के घर वालो को भी कोई  आपत्ति नहीं थी, क्युकी रिश्ते की बात पहले ही जो हो चुकी थी। 
एक दिन जब रिया और मन स्कूल से लौट रहे थे तो रिया का पैर फिसल गया और मोच आ गई।  मन उसे अपने गोदी में उठकर साइकल पर बिठाने लगा। आज रिया जब मन के करीब आई तो एक अलग ही एहसास हो रहा था। बड़ा अच्छा लग रहा था। मन को भी आज कुछ बदला सा लगा रिया को छूकर खुद को खोता सा लगा। एक पल को आँखे चार हुई, गुपचुप ही कुछ बात हुई, प्यार का सागर हिलोरे मरने लगा , पर संकोच और लज्जा के मन आगे टिक न सका।  मन रिया को बैठाकर घर लाया।  आग लग चुकी थी , अरमान दोनों के दिल में पलने लगे थे, दोनों एक दूसरे को अच्छे लगने लगे थे।  अगले दिन जब दोनों स्कूल जाने लगे तो चुप थे समझ नहीं आ रहा था की बात कहा से शुरू करे। कुछ कहने को सूझ नहीं रहा था। तभी रस्ते में एक सरसो खेत के पेड़ से एक फूल तोड़कर रिया मन के आगे कर दी।  मन एक पल को कुछ नहीं समझा पर फूल ले लिया। लौटते समय रास्ते में रिया रुक गई। मन भी रुक गया। रिया बैग से एक गुलाब का फूल निकाल कर मन के आगे कर दी।  मन को कुछ समझ नहीं आ रहा था क्या करे , फिर वह साइकल आगे बढ़ा दिया। 

मन रिया को पसंद करता था पर किसी रिश्ते में बधने से डर रहा था।  अब तो रिया मन को अपना सब कुछ मान चुकी थी , पाने को ठान चुकी थी, पर मन रिया से थोड़ी दूरी बनाने लगा था