Love – The coin (Part 1)
मुंबई ! सपनो का शहर , आधुनिक, प्रगतिशील, भारत का उदर। आत्मा नहीं कह सकता, क्युकी आत्मा तो अयोध्या, वृन्दावन हैं। हृदय तो प्रयागराज है। जिसकी आत्मा निर्मल है हृदय पवित्र है वही सर्वोत्तम है , पूर्ण है।
पंडित राजकिशोर जी , गांव
के एक साधारण
पूजा पाठ कराने
वाले पंडित जी
हैं , न छल
, न कपट , न
लालच , कोई दो
बोल प्रेम के
बोल दे तो
दुनिया भर के
आशीर्वाद उनकी झोली
में डाल देते
हैं। जितना
है , जो प्रभु
की भक्ति से
मिलता है उसी
में खुश हैं। भगवान
में अटूट विश्वास
है कर्म और
धर्म दोनों में
प्रवीण है पर
अहंकार से मुक्त
हैं , इसलिए सांसारिक
भाषा में साधारण
तो आध्यात्म में
महान हैं।
राजकिशोर जी आज
भगवान कृष्ण से
विनती कर रहे
हैं - हे
प्रभु - कौन से
धर्म संकट में
डाल दिए हमें ? अब
हम मुंबई जैसे
बड़े शहर में
भला शादी ब्याह
कराने कैसे
जाये? हम
तो अपने गांव
की दहलीज भी
जल्दी नहीं डाके
हैं , फिर हम
आपकी सेवा से
एक भी दिन
की छुट्टी नहीं
लेना चाहते। अब सेठ
माखनलाल का विशेष
आग्रह भी तो
नहीं टाल सकते। वो
भी आपके परम
भक्त है तो
मेरे सखा भक्त
हुवे और दूसरे
हमारे कन्हैया की
पढाई लिखाई सब
उन्ही की कृपा
से संभव हुई
है। प्रभु
! सेवक के लिए
कोई मार्ग सुझाइये
, धर्म संकट से
मुक्ति दीजिये।
इतना कहकर राजकिशोर
जी भगवान
को प्रणाम किये
,मंदिर के कपाट
बंद किये और
चिंतित मन से
घर की और
प्रस्थान किये। घर पहुंचकर
हाथ मुँह धुले
और खाने बैठे। पंडिताइन
खाना परोसकर पंखा
करने लगी। पंडित जी के
उदास मुख को
देखकर वह पूछ
बैठी की क्या
बात है, आप
कुछ परेशान दिख
रहे हैं? राजकिशोर जी
अपने मन की
ब्यथा पंडिताइन से
कह दिए।
पंडिताइन -
आप कन्हैया
को भेज दीजिये,
उसके
मुंबई घूमने का
सपना भी पूरा
हो जायेगा और सेठ
जी का सम्मान
भी रह जायेगा।
पंडित जी - बात
तो सही है
।
अगले दिन पंडित
जी के सुपुत्र
कन्हैया जी मुंबई
के लिए ट्रेन
से प्रस्थान किये। नाम
कन्हैया था और
सूरत भी कन्हैया
जैसी। धोती
कुरता पहने , बड़ी
सी शिखा रख्खे
, माथे पर त्रिपुण्ड
लगाए।
मुंबई पहुंचकर कन्हैया ने
माखनलाल जी को
अपने आने की
सूचना दी। सभी ड्राइवर
कही न कहीं
बिजी थे , सेठ
जी ने अपनी
बेटी किशोरी को
फ़ोन करके पंडित
जो को साथ
लाने को कहा। किशोरी
अपनी सहेलियों के
साथ खरीददारी करने
आई थी पंडित
जी को साथ
ले चलने की
बात उसे पसंद
तो नहीं आई
पर अब करती
भी क्या। पंडित
जी नए थे,
किशोरी उनको जिस
जगह आने को
कह रही थी
वह समझ नहीं
पा रहे थे
, कभी इस तरफ
तो कभी उस
तरफ भाग रहे
थे। किशोरी
को गुस्सा आ
रहा था। आखिर किशोरी
ड्राइवर को पंडित
जी को लाने
के लिए भेजी। पंडित
जी को लेकर
ड्राइवर आया। किशोरी
फोन पर बिजी
थी , पंडित जी
आकर ड्राइवर वाली
सीट के बगल
बैठे। किशोरी
गुस्से में थी
फ़ोन से फुर्सत
हुई हुई और
गुस्से में बड़बड़
शुरू।
किशोरी - जब आप
को शहर के
बारे में पता
नहीं तो आप
मुंबई आये क्यों
? पापा भी न
कुछ भी करते
हैं , यहाँ पंडितो
की कमी है
जो गांव से
पंडित बुला लिए
, और भी बहुत
कुछ।
पंडित जी कन्हैया कुछ
नहीं कह रहे
थे , सिर्फ़ मुस्कुरा
रहे थे। किशोरी की नजर
सामने आईने पर पड़ी
और सुन्दर सा
मुस्कुराता चेहरा देखकर मुँह
बंद हो गया।
पंडित जी के
चेहरे की झलक
मात्र से वह
सब भूल गई
और कई मिनट
बस देखती रही। शहर
में उसने लड़के
बहुत देखे थे
, सुन्दर , गोरे पर
इस चहरे में
जो बात थी
वो कही और
न दिखा था
, मुस्कान तो मानो
जैसे स्वयं कामदेव
उतर आये हों। किशोरी
के मन में
पंडित जी नाम
सुनकर एक मोटा
सा , तोंद फुलाये
पंडित का दृश्य
आता था पर
हकीकत तो कुछ
और था। अब
उसे अपनी बातो
पर पछतावा भी
होने लगा पर
अपनी सहेलियों के
सामने पंडित जी
से sorry भी नहीं
बोल सकती थी। आखिर
यह उसके image का
सवाल था। उसकी सहेलिया
भी कन्हैया की
मुस्कान को निहारे
जा रही थी,
मानो किसी ने
मोहिनी मंत्र मार दिया
हो। अब कोई
कुछ न बोल
रहा था , कन्हैया
जी शहर की बड़ी इमारतों और बड़ी गाड़ियों
को निहार रहे थे। किशोरी को अब
अपने सहेलियों से
जलन भी हो
रही थी , हो भी
क्यों न आखिर
सब उसके shoping के चर्चे
छोड़कर सिर्फ कन्हैया
के दीदार में
जो लग गई
थी।
कन्हैया जी घर
पहुंचे तो सेठ
माखनलाल जी खुद
अगवानी करने आये। किशोरी
को समझ में
नहीं आ रहा
था की पापा
इस लड़के को
इतना भाव क्यों
दे रहे हैं
, यहाँ तो 100 रुपये में
पंडित मिलते हैं
, पर इसमें ऐसा
क्या है ?
कुछ देर में
सारा परिवार बरामदे
में आया। माखनलाल की 3 पुत्रिया
था। जया
, किशोरी , ललिता। जया
की शादी हो
रही थी और
किशोरी ललिता
अभी पढाई करती
थी। बरामदे
में पंडित जी
कन्हैया आराम से
सोफे पर बैठे
हैं , उनके चहरे
पर एक अलग
ही तेज है।
किशोरी के लिए
यह बहुत ही।
intresiting था की आखिर
अब क्या होने
वाला है , पापा
सबको बुलाये क्यों
हैं? जब
सारा परिवार एकत्र
हो गया तो
सेठ माखनलाल और
उनकी पत्नी आगे
बढे । एक
नौकर एक बड़े
से परात में
पानी लेकर आया
और सेठ और
सेठानी पंडित जी के
पैर धुलने लगे। आज
तक पापा बड़े
से बड़े मिनिस्टर
या अधिकारी का
तो ऐसा स्वागत
नहीं किये फिर
इस लड़के का
? किशोरी को कुछ
समझ नहीं आ
रहा था। पैर
धुलने के बाद वही
जल सबके ऊपर
और पूरे घर
में छिड़का गया।
ये सब क्या
है और क्यों
हो रहा है
जानने की जिज्ञासा
उसके अंदर उमड़
रही थी। जब सेठाइन
अंदर गई तो
वह भी पीछे
पीछे गई और
पूछ बैठी।
किशोरी - माँ, ये
सब क्या है
, इस लड़के का
इतना स्वागत और
सम्मान ?
सेठाइन - सम्मान से नाम
लो उनका , वो
लड़के नहीं पंडित
जी हैं , हमारे
गुरु महराज।
किशोरी - वो तो
ठीक है, पर
इतना
सम्मान तो आप
लोग मिनिस्टर के
आने पर भी
नहीं करते जितना
इनका हो रहा
है।
सेठाइन - क्युकी वो मिनिस्टर
है और ये
हमारे गुरु महराज
।
किशोरी - तो क्या
गुरु महराज मिनिस्टर
से ज्यादा बड़े
हैं , ज्यादा पावरफुल
हैं?
सेठाइन - किशोरी - गुरु को
हमारे यहाँ भगवान
से भी ऊपर
माना गया है
, अब जो भगवान
से ऊपर है
वो सबसे ऊपर
है।
किशोरी - पहले ये
तो जान लो
की , जिसे आप
इतना सम्मान दे
रहे हो वह
उस लायक है
भी की नहीं
।
सेठाइन किशोरी से उलझना
नहीं चाहती थी
, वह जानती थी
की इसे जितना
समझाऊगी ये उतना
ही प्रश्न करेगी।