Saturday 7 December 2019

ऊरु (A love story)





एक कॉन्फ्रेंस हॉल जहाँ पर कुछ ही देर में ऊरु ऑर्गनिक  कम्पनी के मालिक mr.  कामोद अपने कंपनी के सभी 700  कर्मचारियों को सम्बोधित करने वाले हैं। उनकी कंपनी ने 4000  करोड़ के आकड़े को पार किया है जिसकी ख़ुशी में ये विशेष प्रोग्राम रख्खा गया है। तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा हॉल गूंज उठा।  स्टेज पर mr  कामोद आ चुके हैं। कामोद जी की उम्र यही कोई 30 से 31 के बीच है। चहरे पर एक प्यारी मुस्कान और आँखों में कुछ करगुजरने वाली आग उनकी शख़्सियत  को बया करती है। स्टेज के नीचे बैठे सभी लोग खड़े होकर ताली बजा रहे हैं। कामोद एक नजर चारो तरफ घुमाते हैं, तालियाँ अभी भी बज रही हैं।  एक हलकी मुस्कान के साथ हाथ जोड़कर सभी का अभिवादन करते हैं और सभी को बैठने का इशारा करते हैं।

mr  कामोद - यहाँ उपस्थित सभी लोगो का मेरा नमस्कार, प्रणाम।  आप सबको देखकर दिल हर्षित हो रहा है, आज जिस सफलता को मनाने के लिए हम यहाँ आये हैं उसके असली हक़दार आपसब हैं।

कामोद जी के इतना बोलते ही एक बार फिर पूरा हाल तालियों से गूँज गया। कामोद बोलते रहे और रह रहकर हॉल तालियों से गुंजायमान होता रहा यह सिलसिला काफी देर तक चलता रहा।
mr  कामोद - हमारी कंपनी के स्टोर देश के  सभी जिलों तक पहुंच चूका है, हम लोगो को स्वस्थ और हानिरहित चीजे उपलब्ध करा रहे हैं।  इससे हमें और हमारे लोगो को अच्छा फायदा हो रहा है पर देश के किसान तक जो हमें ये सारी चीजे मुहैया करा रहा है उस तक सही कीमत नहीं पहुंच पा रही है, इसके लिए जल्द ही हम बीच के बिचौलियों को हटाकर सीधे किसानो से खरीददारी करेंगे, इससे किसान और हमारा देश दोनों खुशहाल होंगे। मै जल्द ही गावो में जाकर किसानो से बात करुगा और उनको अपनी कंपनी से जोड़ूगा।

mr  कामोद की बात पूरी होते ही एक बार फिर हाल तालियों से गूँज गया।

अगले दिन

कामोद अपने  जनरल मैनेजर मिश्रा जी  को अपने केबिन में बुलाते हैं।
कामोद - मिश्रा जी मै कुछ गावों में किसानो से मिलने और उनको अपने प्लान के बारे में  समझाने जा रहा हूँ, आप यहाँ की सारी चीजे सम्हाल लीजियेगा।
मिश्रा जी - सर , अपने पास इतने जूनियर और सीनियर लोग हैं , उसमे से किसी को भेज दीजिये , आपका जाना उचित नहीं है, गांव के माहौल में आप रह नहीं पाएंगे।

कामोद - मिश्रा जी , मैनें अपनी जिंदगी के 24 साल गाँव  गुजरे हैं , अब ईश्वर की कृपा से ये सब हो गया है पर गांव आज भी मेरे दिल में बसता है , आप ये मान लीजिये की मै छुट्टिया मनाने गया हुवा हूँ। लोगो को शुद्ध चीजे देता हूँ मै भी गांव की शुद्ध हवा खा आऊं।

कामोद अगली सुबह महाराष्ट्र के गाँवों की तरफ निकल चले।  गांव के नजदीक पहुंचते ही उन्हें मिटटी की खुशबु और ताजी शुद्ध हवा मदमस्त करने लगी।  शाम होते होते वो अपने दोस्त के फार्म हाउस पर पहुंच गए।  फार्म हाउस पर पहुंचकर एक बार चारो तरफ नजर उठाकर देखे।  हरे भरे पेड़ , पछियो की आवाजे , दूर दूर तक फैले खेत देखकर पुरानी यादो में खो गए। गांव में गुजारे वो दिन और अपने प्यार के साथ बाग़ बगीचों में मिलना, भैस चराने के बहाने उसके घर के चक्कर लगाना , वो आम के पेड़ से आम तोड़ना , पेड़ के नीचे उसके गोद में सर रखकर सोना, सारी चीजे आँखों के सामने से गुजरी तो आँखों में आंसू आ गए।

एक बूढ़ा आदमी  जो फार्म हाउस की देखभाल करता था बाहर आया और कामोद के सामान को रूम में लेकर गया।  कामोद ने जब बूढ़े आदमी को दद्दू कहा तो बूढ़ा आदमी थोड़ा सकुचा गया।
बूढ़ा आदमी - साहब हम तो नौकर हैं आप हमें राम खेलावन कहकर बुलाइये।
कामोद - किसने कहा आप नौकर हैं, आप हमारे परिवार के बुजुर्ग हैं और हमारे यहाँ बुजुर्गो का नाम नहीं लिया जाता उन्हें सम्मान देकर बुलाया जाता है।
रामखेलावन इतना सम्मान पाकर मुस्कुरा उठा।
कामोद - दद्दू ! कौन कौन है आपके परिवार में ?
रामखेलावन कामोद का यह प्रश्न सुनकर कुछ देर चुप रहा फिर दुखी मन से बोला - कोई नहीं।
कामोद - क्यों ?
रामखेलावन - बेटे को जन्म देते ही घरवाली चल बसी, एक बेटा था जो 22 साल की उम्र में साप काटने से गुजर गया।
इतना कहते कहते रामखेलावन के आँखों से आंसू निकल पड़े। कामोद उनके पास जाकर अपने रुमाल से उनका आसू पोछा।
कामोद - सॉरी दद्दू मैंने आपको रुला दिया।
रामखेलावन - कोई बात नहीं साहब, आप बैठिये मै आपके लिए चाय बनाकर लाता हूँ।
कामोद पानी का ग्लास रामखेलावन को देते हुवे, आप पानी पीजिये आज मै आपको चाय पिलाता हूँ।
रामखेलावन - अरे नहीं साहब , आप इतने बड़े आदमी होकर चाय बनाएंगे, ये आपको सोभा नहीं देता ये मेरा काम है मुझे करने दीजिये।
कामोद - दद्दू , शहर की भागदौड़ की जिंदगी में कहीं गुम हो गया हूँ , एक बार फिर पुरानी जिंदगी जीना चाहता हूँ ,  आज चाय मैं बनाऊगा।

कामोद चाय बनाया और रामखेलावन के साथ बहार गार्डन में बैठ कर दोनों चाय पिए।  अब सूरज डूब रहा था, गौधूलि हो रही थी।

कामोद - दद्दू ! खाना कौन बनाता है ?
रामखेलावन - साहब रामबली बनाता था , उसकी जोरू अस्पताल में है तो वह पूरे हप्ते छुट्टी पर है।
कामोद - फिर तो मुसीबत हो गई, हमको खाना बनाना नहीं आता।  अब  खायेगे क्या ?
रामखेलावन - साहब हम कुछ बना देंगे।
कामोद - यहाँ आस पास कोई होटल नहीं है क्या ?
रामखेलावन - नहीं साहेब , यहाँ गांव में कोई होटल कहा है।
कामोद - आस पास  के किसी बाजार में ?
रामखेलावन - साहेब होटल तो नहीं है , पर यहाँ से 5 किलोमीटर दूर एक छोटा सा घरघूती वाला है।
कामोद - तो जाइये वहीँ से ले आइये।
रामखेलावन - ठीक है साहेब।

कामोद पैसे निकाल कर रामखेलावन को दिए और रामखेलवन पैदल ही चल पड़ा।
कामोद - दद्दू  पैदल क्यों जा रहे हैं?
रामखेलवन -  साहेब बस एक घंटे में लेकर आता हूँ।
कामोद - दद्दू ! जब अपने पास गाड़ी है तो आप पैदल क्यों जाओगे , आप गाड़ी में जाइये और आराम से लेकर आइये।

रामखेलावन आजतक इतनी महगी गाड़ी देखा तक नहीं था  बैठने की तो दूर रही।

कुछ देर में रामखेलावन ऑडी गाड़ी से उस घरघूती (घर में ही खाना बनाकर बेचने वाली जगह ) होटल में पहुंच गया।  एक छोटा सा कमरा वही एक कोने में छोटी सी रसोई हैं। रसोई के बाहर ३-4 कुर्सियां और स्टूल ग्राहकों के बैठने के लिए लगे हैं।

अब अँधेरा हो गया था, घरघूती होटल के रसोई में एक बल्ब जल रहा था। उसकी रोशनी बमुश्किल बाहर तक पहुंच रही थी।
रसोई में एक सुन्दर सी औरत रोटियां सेक रही है जिसका नाम उर्वशी है । उसे देखकर लग रहा था की जैसे अभी कुछ दिन पहले ही शादी हुई थी।
बाहर उसका पति सब्जिया काट रहा था, दारू के नशे में चूर कभी कुछ बकता तो कभी उर्वशी को गलियाता।

गाड़ी की लाइट जैसे ही उस कमरे पर पड़ी तो वह सोची की कौन आ गया ? यही सोचकर बहार आ गई।  बाहर बैठा उसका पति भी उठकर खड़ा हो गया।
ऑडी गाड़ी देखकर दोनों पति पत्नी कुछ समझ नहीं पाए की उनके दरवाजे पर इतनी महगी गाड़ी से कौन आया है ? गाड़ी से रामखेलावन उतरे।
राम खेलावन को उर्वशी पहचानती थी।  राखेलवन को देखकर उर्वशी चौंक गई , सुबह तक जो साइकल  से चल रहे थे शाम को को करोडो की गाड़ी से।

उर्वशी - काका कोई लॉटरी लग गई क्या ?
रामखेलवन - अरे नहीं बिटिया, शहर से साहब आये हैं, तो बोले दद्दू आप पैदल नहीं गाड़ी से जाओ तो हम चले आये।
उर्वशी - साहब आपके दिलेर लगते हैं।
रामखेलवन - सही बोली बिटिया दिलेर तो दिलेर उतने ही सज्जन आदमी हैं , अपने हाथो से चाय बनाये और हमका पिलाये।

आज बहुत समय बाद उर्वशी रामखेलावन को इतना खुश देख रही थी।  उसे रामखेलावन के बारे में सब पता था , राम खेलावन को खुश देखकर उसे भी ख़ुशी हुई।  अभी उर्वशी रामखेलावन से बात कर ही रही थी की उसका पति फिर से गलियाना चालू कर दिया।

उर्वशी का पती - चल ससुरी अंदर खाना बना, जब देखो तब लोगो से बात करने लग जाती है.

रामखेलावन को उर्वशी पर तरस आता था की इतनी सुन्दर और पढ़ी लिखी लड़की शराबी के को कैसे मिल गई , ईश्वर भी क्या क्या करता है।

रामखेलावन खाना लेकर फार्महाउस पहुंचे । कामोद को जोरो से भूख  लगी थी।  रामखेलावन खाना लगाया, कामोद जैसे ही पहला निवाला मुँह में डाला, तो थोड़ा सोच में पड़ गया, खाने का स्वाद उसे जाना पहचाना लग रहा था। इससे पहले भी वह ऐसा खाना खा चूका था पर जिसके हाथो से खाया था वह अब उसी जिंदगी में नहीं थी। आज वर्षो बाद उसे फिर वही स्वाद नसीब हुआ था। बड़े और महँगे होटलो में तो वह खाता ही रहता था पर जो स्वाद इस खाने में था वह कहीं नहीं था।  खाना खाकर आत्मा तृप्त हो गई। अब तो रोज कामोद वही खाना खाता था। खाते हुवे बनाने वाले की तारीफ भी करता।

रामखेलावन कामोद को बताये की जहा से खाना लाता हूँ बहुत प्यारी बच्ची है पर उसका पति शराबी है , अक्सर उससे मारपीट करता है , शराब और जुवें की लत में सारी जमीन जायदाद बेच लिया और अब इसी खाने से उनका गुजरा चलता है। यह सब सुनकर कामोद को बहुत दुःख हुवा।

रामखेलावन जब खाना लेने जाते तो उर्वशी भी साहेब के बारे में खूब बाते करती। ढेर सारी बात पूछती और रामखेलवन कामोद के सरल स्वाभाव और सज्जनता की बखान करते नहीं थकते थे।

उर्वशी -  साहब शादीशुदा है या कुँवारे  ?
 रामखेलवन बोले - साहब अभी कुँवारे हैं , जिससे प्रेम करते थे वो उन्हें छोड़कर चली गई तो कहते हैं अब शादी ही नहीं करेंगे।
 उर्वशी - आपके साहब जब इतने पैसे वाले हैं और इतने अच्छे इंसान हैं तो कोई मूरख ही छोड़कर गई होगी।
रामखेलावन - तब साहब गरीब हुवा करते थे, इसलिए छोड़कर चली गई।
उर्वशी - तो साहब आपके देवदास बने हैं।

इतना कहकर दोनों है पड़े।

उर्वशी - एक काम करोगे काका ?
उर्वशी - इस छोटे से बाजार में ये खाने का धंधा तो चल नहीं रहा, कोई दो रोटी ले जाता है तो कोई थोड़ी सब्जी और शराबी पति की कोई बात आपसे छिपी नहीं है
साहब से कहकर मुझे फार्म हाउस पर खाना बनाने के लिए लगवा दो, फिर जब - जब  साहब आएंगे तो उन्हें मेरे हाथ का खाना रोज मिलेगा।
रामखेलावन - बात तो सही कही बिटिया, हम आज साहब से चर्चा चलाएंगे।

रामखेलावन खाना लेकर आये और कामोद बखान बखान कर खाना शुरू कर दिया।  सही मौका देखकर रामखेलावन उर्वशी की बात कामोद से कह दिए।

रामखेलवन - साहब खाना बनाने वाली कह रही थी की आप उसे यहाँ खाना बनाने पर लगा लीजिये, बेचारी थोड़ा परेशान है।
कामोद - ठीक है काका कल सुबह बुला लाइए। यहाँ मै 1000 एकड़ जमीन खरीदने की सोच रहा हुँ, बात भी लगभग बन रही है तो मेरा आना लगा ही रहेगा।

अगली सुबह रामखेलवन उर्वशी को बुलाने गए।  ऑडी कार में बैठना उर्वशी का सपना था , गाड़ी में बैठकर उसे बहुत ख़ुशी हो रही थी तो दुःख भी हो रहा था , उसने खुद की ऑडी कार में बैठने का सपना देखा था। गाड़ी में AC चल रही थी, हल्का म्यूजिक भी चल रहा था, आज तो उर्वशी को मजा आ गया। कुछ ही मिनटों में गाड़ी फार्म हाउस पहुंच गई।  फार्म हाउस देखकर उर्वशी को याद आया की उसके सपनो का घर भी ऐसा ही था।  राम खेलावन  उर्वशी को गेट पर ही रोककर अंदर गए और कामोद को बताया की खाना बनाने वाली आ गई है आप मिल लीजिये। कामोद  लैपटॉप में कुछ काम कर रहा था तो इशारा से कहा की अंदर बुला लाइए।
रामखेलावन उर्वशी को अंदर लेकर आये , उर्वशी नजरे नीचे की थी उसे बहुत संकोच हो रहा था, उसने सोचा नहीं थी की कभी ऐसा भी दिन आएगा की दुसरो के घर खाना बनाना पड़ेगा। किस्मत और वक्त की बात है जो जो न करवाए। नजरे नीचे किये वह अंदर आई, डर के मरे वह कामोद की तरफ देख भी नहीं रही थी चुपचाप सर झुकाये बैठी थी। कामोद लैपटॉप की स्क्रीन से नजरे गड़ाए बिना उसकी तरफ देखे ही बैठने के लिए बोला। एक मिनट बाद कामोद लैपटॉप की स्क्रीन को बंद किया और यह कहते हुवे उसकी तरफ देखा की आप खाना बहुत  >>>>><<<<<<< अभी बात पूरी नहीं हुई थी की उर्वशी और कामोद दोनों एक दूसरे को देखे।  एक दूसरे को देखकर दोनों चकित रह रह गए  सहसा उठ खड़े हुवे। बड़ी देर तक दोनों एक दूसरे की तरफ बिना कुछ बोले स्तब्ध हुवे देखते रहे।

कामोद - उरु तुम ?

कामोद को 6 साल पहले की बात याद आ गई।

यह वही लड़की थी जिसे आजसे साल पहले कामोद पागलो की तरह प्यार करता था।  उर्वशी को कामोद प्यार से उरु बुलाता था।  तब कामोद सिर्फ एक ही काम करता था उरु से प्यार।  दोपहर के वक्त  बगीचे में दोनों मिलते तो कामोद ऊरु की गोद में सर रखकर लेट जाता और  ऊरु कामोद के बालो में उंगलिया फेरती।   रोज कामोद  के लिए घर से खाना बनाकर और कामोद खाये जाता गुण गाये जाता। ऊरु भी कामोद से प्यार करती थी पर कामोद से भी ज्यादा प्यार दौलत से करती थी।  कामोद एक गरीब घर का लड़का था पर जितना था उतने में ही खुश था, उसकी ख्वाहिस बस उरु से शादी थी। ये बात उर्वशी को पसंद नहीं थी।  वह किसी दौलत वाले से शादी करना चाहती थी और इसके लिए उसने कई बार कामोद को मुंबई कमाने के लिए भेजा पर कामोद का मन बिना उरु के नहीं लगता और 2 -4 दिन में ही वह वापस आ जाता। अपनी भैसे लेकर चलता और भैस चराने के बहाने उर्वशी के दीदार करता। रात दिन सुबह शाम कामोद को बस ऊरु दिखती। इसी दौरान उर्वशी के  पापा ने उर्वशी की शादी एक दूर के रिश्तेदार के यहाँ कर दी। लड़के के घर गाड़ी मोटर अच्छा घर सब था। जब यह बात उर्वशी को पता चली तो वह शादी के लिए राजी हो गई।  ऊर्वशी कामोद के साथ अपना भविष्य उज्जवल नहीं देख रही थी इसलिए उसने यह रास्ता चुना था। जब यह बात कामोद को पता चली तो वह ऊरु से गांव के बगीचे में मिला।
कामोद - उरु,  मुझमे क्या कमी है की तुम उस लड़के से शादी कर रही हो ?
उर्वशी -  तुम जिंदगी में कुछ कर नहीं सकते और मै सारी जिंदगी गरीबी में नहीं बिता सकती।
कामोद - उर्वशी मै तुम्हारे सारे सपने पूरा करूँगा। अपना वक्त आएगा जब हमारे पास हर ख़ुशी और ढेर सारी दौलत होगी।
उर्वशी - तुम्हारे पास करने को बड़ी बड़ी बाते हैं और तुमसे कुछ न हो पायेगा।
कामोद - तुम मुझे  बस 1 से 2 साल का वक्त दो , मै तुम्हारे लिए सब करुगा, मेरे लिए तुम्हारे प्यार से बढ़कर दुनिया की कोई दौलत नहीं है।
उर्वशी - कामोद अब मै और ज्यादा तुम्हारा इन्तजार नहीं कर सकती

इतना कहकर उर्वशी चल दी और कामोद उसके पैरो को पकड़ कर लिपट गया। उर्वशी भी दिल पर पर पथ्थर रख ली थी और फिर अपने सपनो से समझौता नहीं कर सकती थी।

ये सब बाते याद करके कामोद की आँखों से आंसू गिरने लगे , उर्वशी भी कामोद को इतने दिन बाद पाकर और उसके साथ वर्षो पहले की हुई सलूक को यादकर रोने लगी।  कामोद उर्वशी के करीब पंहुचा ,दिल में आया की उसे सीने से लगाकर दुलारे , चुप कराये , आंसू पोछे पर उर्वशी के मांग के सिन्दूर पर नजर पड़ते ही कामोद ठिठक गया और उसे याद आया की अब वह किसी और की अमानत है उसकी ऊरु नहीं।